कहां गया वो लम्हा, जो चंद पलो पहले था,
कहा गया वो मुखड़ा, कुछ दुखड़ो के पीछे था।
दुख में अब चिंता नहीं,
सुख से मन डरता है,
कही बीत न जाए ये वक्त,
ये खौफ हमेशा रहता हैं।
अतीत की उस हर याद से,
पल- पल ये मन मरता है।
हर उजाले के पीछे,
घोर अंधेरा रहता है।
इंसानों के इस जंगल में,
मन ही मन से डरता है।
भविष्य की उस गुफा में,
न जाने क्या रहस्य है,
विचारों से बंधा पड़ा,
एक लाचार मनुष्य है।
चलता रहेगा सिलसिला यू ही,
जब तक जीवन खेल का चलेगा।
सदिया निकल जाएगी,
पीढ़ियां गुजर जाएगी,
चाहें शीशा हो या नगीना,
हर चीज़ इतिहास बन जाएगी।
मौत का दिन तो आएगा ही,
हर पल फिर क्यों मरते हो।
अमर नहीं कोई इस दुनिया में, to
अंत नहीं है इन प्राणों का,
अब तुम किस से डरते हों।
गुजर गया वो लम्हा भी,
खुलकर जी लो आज तुम भी,
कल कभी ना आएगा,
मत रोको दिल को अपने,
ये वक्त गुजर जाएगा।
कर ले कद्र इस लम्हें की,
ये लोट के फिर ना आएगा।
ये ल
piece of my world to yours ✨
these are poetries in Hindi, with a mix of Urdu words;
as much as i like my poems in their original form, i'll add the translation if anyone struggles to read the language so no issues there;
i hope you like them ✨
- irina