'दीदी मुझे ना अपना ये शहर छोड़कर कही नही जाना, मैं चाहती हूँ मेरा एडमिशन यही हो जाये, मुझे प्यार है इस शहर से, कही और ये सुकून नही मिलता मुझे।
अच्छा पागल और शादी भी इसी शहर के लड़के से करनी है, एक ही जगह मायका और ससुराल।
बोटिंग करते हुए दोनों बहनें अपनी दुनिया मे जी रही थी उन्हें क्या पता था कि अपनी किस्मत हम नही लिखते जिन चीज़ों से प्यार होता है, उनसे दूर होना ही लड़कियों का भाग्य होता है।
ऐसा नही है पागल, अगर किसी दूसरे शहर में भी तेरा एडमिशन होता है तो धीरे धीरे उस शहर से ही प्यार हो जाएगा, क्या पता या फिर उस शहर के किसी क्यूट से बंदे से।
आपको पता है ना दी, मुझे अपने कैरियर से ज्यादा इंट्रेस्ट किसी चीज़ में नही और आप जानते हो ना मुझे घर के लिए बहुत कुछ करना है। अब पहले जैसा कुछ नही रहा बहुत कुछ बदल गया है।
कोई बात नही बेटा, वक़्त बदलता रहता है, हमारा भी बदलेगा।
धृ
Yeh Novel femous author umera Ahmed ki Peer - E - Kamil ka Dusra Season hai Aab - E - Hayat hai jise main Farheen Khan Roman English (Hinglish) mein edit karke yahan per post kar rahi hun , Jaise Maine iska pahla Novel Peer - E - Kamil Diya Hai vaise hi yah bhi hai jo aap logon ko meri library Mein aasani Se Mil jaega to enjoy kijiye Umera Ahmed ki yah dusri behtarin book Aab - E - Hayat.....