प्रस्तुत कविता में मैने अपने टिमटिमाते बचपन को दीया दिखाया है। अपना सब कुछ लुटाकर भी हम अपने स्वर्णमयी बचपन को वापस नहीं बुला सकते। वर्तमान देखकर लगता है कि हमारी पीढ़ी ही वह आखिरी पीढ़ी हैं, जिसने अपना बचपन हँसकर , खेल-कूदकर, स्वर्णिम और सुहाना बनाया है।All Rights Reserved