उन्नीसवीं शताब्दी क े उस दौर में लखनऊ के नवाबों की रसोइयों में पाककला अपने चरम पर पहुँच चुकी थी जिसका विस्तृत वर्णन मौलाना अब्दुल हलीम शरर की किताब 'गुज़िश्ता लखनऊ' में पाया जाता है। क़िस्सा है कि लखनऊ के नज़दीक की एक रियासत के ऐसे ही एक शौक़ीन नवाब सैयद मोहम्मद हैदर काज़मी ने अंग्रेज़ लाटसाहब को खाने पर बुलाया।All Rights Reserved