आखों में नमी और चेहरे की उदासी कुछ और ही बयां करती है मुस्कुराने की कोशिश करता हूं आखें भर जाती है कितना भी छुपाऊं दर्द आखों से सच्चाई बह जाती है अनदेखा कर देते है इन्हें लोग में क्या करुण ये आखें कुछ ज्यादा ही सच कह जाती है में चाहता हूं रोज बारिश हुवे आशुवों से भरी ये आखें कोई न देखे मेरे दर्द से वाकिफ है ये मेरी आखें जो थक के कहता है अब बस भी कर और कितना रुलाएगा मुझे में अब आखों को कैसे समझूं पुराने दर्द कम होने से पहले एक ओर नए दर्द मिल जाते है मुझे में कहता हूं अपनी इन आखों से तू यू न ताना मारा कर मुझे में हारा हुआ हूं जमाने से अब तुझसे हारा तो मैं अपनी ये आखें बंद कर लूंगा फिर न आसूं बहेगा न तू कुछ कह पाएगा चार लोग मेर पास रोते नजर आयेंगे चार कंधो पे मुझे ले जाया जाएगा अब बता तू क्या चाहता है मैं चाहता हूं तू थोड़ा और छुपा मेर दर्द को में अभी इन आखों से और देखना चाहता हूंAll Rights Reserved
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