ना हारे हुए हम,ना सताए किसी से खुद को पानी समझ के मिल गए सभी से ना आया मुझको,किसी ने बचाने मुझे पत्थर समझ के छोड़ा जहां ने ये रस्मों रिवाजों,ये चाहत की बाते पल में उड़ा दी,एक शोखी हवा ने हवाओं का क्या है,ना रुकती कहीं पे जहां सांस रुकी,आशिया है वही पे कुतरते है दिन रात यादों के कीड़े कोई भूख मिटा दे,आके कहीं से ना अब दौर मेरा रहा,पहले जैसा मिली जिसको जैसी मिला मुझको वैसा जो त न्हाई बांटना चाहा,मैने बाटी उसे से खुद को पानी समझ के मिल गए सभी से #ParveenAll Rights Reserved
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