सुन के कोई आहट दौड़ी चौखट तक मैं आ जाती दी होती आवाज तो शायद पनघट तक मैं आ जाती कोरा कागज़,कोरे दिल का कोई फसाना लिख देते प्यार में बोले जाने वाले कोई बहाना लिख देते कुछ ना लिखते तो भी एक लकीर बनाकर रख देते या लकीरों में कोई ख़ामोश फसाना लिख देते काश कोरे कागज में स्याही बन के मैं समा जाती दी होती आवाज तो शायद पनघट तक मैं आ जाती बिखरे बिखरे उलझे उलझे क्यों रहते हो बोलो ना ना मुझसे ना खुद से तुम ,कुछ कहते हो बोलो ना टुकड़े टुकड़े अल्फाजों में कौन कहानी दफन हुई अंदर अंदर किसके दर्द को तुम सहते हो बोलो ना तेरे ज़ख्म पिरो धागे में खुद के गले मैं पहना जाती दी होती आवाज तो शायद पनघट तक मैं आ जाती देख मेरे मन के भौरे तेरा गुलशन उजड़ा जाता है तेरी हाथों की हथेलियों पे पंखुड़ी बिखरा जाता है इतना ना महक की दूर कोई आसेब आ लिपट जाए ख्यालों के बादल में चेहरा,गुलाब सा निखरा जातAll Rights Reserved
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