मंगल को कभी मां का स्नेह न मिला, पिता ने भी मानो उससे मुंह मोड़ लिया हो, उसे प्रेम और आदर इन दोनों भावों का वास्तविक अनुभव, दमयंती ने करवाया। दमयंती रूपवती होने के साथ साथ गुणवती भी थी। बचपन का प्रेम पवित्र होता है, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी और समाज के रीति-रिवाजों से इसका कोई सरोकार नहीं होता। मंगल और दमयंती का प्रेम भी ऐसा ही था - पवित्र। ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित यह कहानी 1970 के समय से आरम्भ होती है। आज़ादी मिले हुए दो दशक से अधिक समय बीत चुका था पर गाँव में अभी भी सब कुछ पहले जैसा ही था। यह कहानी मंगल और दमयंती की कहानी है। यह कहानी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ विद्रोह की कहानी है।