धर्म और ईश्वर का विरोध जरूरी है क्यों कि-
हिंसक-लुटेरे शोषकों का हथियार है 'ईश्वर' और इस ईश्वर नामक हथियार का उत्पादक एवं दलाल है धर्म.
इसे समझने के लिए मानव समाज के विकास के संक्षिप्त इतिहास पर गौर करें-
आदिम युग में इंसान लाखों बर्षों, अभी छै-सात हजार बर्ष पहले तक, नारी के नेतृत्व में बिना किसी शोषण के जीवन यापन करता रहा, चूंकि तत्कालीन समाज में शोषण नहीं था इसलिए किसी ईश्वर या धर्मसंस्था की आवश्यकता भी नहीं थी. आदिम समाज के बिघटन के साथ ही ईश्वर और धर्मसंस्था की उत्पत्ति हुई, क्योंकि इसके बाद की समाज व्यवस्थाएं- दासप्रथा, सामंतवाद और आधुनिक पूंजीवाद, शोषण पर आधारित समाज व्यवस्थाएं हैं.
प्रारंभिक धर्माचार्य तब भी मुफ्तखोरी पर जीवन गुजारने के लिए दास-स्वामियों के दलालों के रूप में काम करते हुए अमानवीय दासप्रथा को ईश्वरी-विधान बताकर इसका समर्थन करते रहे. तमाम क