गायत्री चालिसा
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Ongoing, First published Oct 20, 2015
पं. भागवत प्रसाद मिश्र "शास्त्री" रचित गायत्री चालिसा
दोहा
ब्रम्हज्ञान प्रसारिणी, सकल सिद्धी की खान ।
बन्दहूँ गायत्री तुम्हे,  करहु कृपा जन जान   ।।
चौपाई
जयति जयति गायत्री माता ।
ध्यावहिं विष्णु विरूपि विधाता ।।
ब्रम्हज्ञान प्रसारिणी जय जय  ।
संकट सकल निवारिणी जय जय ।।
मोद भरणि सुख सम्पत्ति दायिनि ।
जयति जयति जय विश्व निधायिनि ।।
ऊँ स्वरूपिणि कलि मल नाशिनि ।
भूर्भुवः स्वः स्वयं प्रकाशिनि।।
त्तसवितु हंसासुनि धन्या । 
तथा वरेण्यं वर विधि कन्या ।।
भर्गो भागहिं सकल कलेशा ।
ध्यावहिं जो देवस्य हमेशा ।।
धीमबहि धैर्य स्थैर्य सदुपायिनि ।
धियो बुद्धि बल विद्या दायिनि।।
योनः नित नव मंगल करिणी ।
प्रचोदयात निखिल अघ हरिणी ।।
लषण पवन सुत कृष्ण स्वरुपिणी ।
राधा नारायण अनुरुपिणि।।
हय ग्रीव अरु गरुड. गोपाला ।
रमा रमेश नृसिंह विधि बाला ।।
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