जरा एक मिनिट ठहरीये ... इसे लिखते समय मेने इश्वर और स्वर्ग के बारे मे बहुत कुछ कहा है जो पूर्व धारणाओं पर आधारित बस एक कल्पना मात्र है. मै साफ कर देना चाहता हू की यह उपन्यास स्वर्ग और इश्वर के बारे मे कोइ आकलन नही है. यह सच है की मेने इश्वर से बहुत सारे सवाल जीवन और मृत्यु और उसके बाद के बारे मे किये है पर उस तरफ से अभी तक मुझे इस बारे मे कोइ सटीक जबाब नही मिला है जिससे मे इस बारे मे पक्के तोर पर कुछ कह सकू.
मै किसी के विशवास पर चोट नही कर रहा हू की वो कंहा से आया है और मौत के बाद उसे कंहा जाना है. ना ही मै कुछ स्थापित नहीं करना चाहता...यह तो बस मौत के बाद की असीम संभवनाओं में से एक की काल्पना है, जिसने जीवन और मौत के पहलुओं को बस छुआ भर है. उम्मीद है इसे पढते समय आप अपनी कल्पनाओं के पंख को पूरी तरह खोलते हुये मेरा साथ एक नये सफर पर चलेगे.
भला को इंटरनेट का की इतनी सारी चेतानाओं के साथ इ
भाभी और देवर के बीच शरारत तो चलती रहती है। मगर मेरी भाभी तो एक कदम आगे निकली और उनकी वजह से मुझे दो दिन एक स्त्री बनकर रहना पड़ा और घर के सारे काम भी करने पड़े, और घर के सारे लोगों ने उनका साथ दिया। तो आखिर उन्होंने ये कैसे किया कि मेरी माँ भी इसमे उनकी सहभागी बन गई। जानने के लिए ये कहानी अवश्य पढे।
लेखिका: विजया भारती