प्रस्तावना यह नाटक हमारे समाज में जब एक बेटी का जन्म होता है तब से लेकर अपनी पूरी जिंदगी के सफ़र में वो किस तरह अपने सपनो का त्याग अपने परिवार के लिए करती है । पर कहीं न कहीं उसके सपने उसे एहसास दिलाते है की उसका भी अपना कोई अस्तित्व है , अपने प्रति उसकी कोई जिम्मेदारी है । इस नाटक को लिखते वख़्त किरदारों के साथ पूरी ईमानदारी करने की कोशिश की गई है ।