प्रस्तावना प्रस्तुत नाटक में मैंने ,किस तरह हर वर्ग के लोगों को जीने के लिए खुद से लड़ना पड़ता है । न जाने कितने सपनोँ की चिता को अग्नि देनी पड़ती है । रिश्तों की आग में तपना पड़ता है । यह किसी एक की बात नहीं अपितु पुरे समाज को खुद से लड़ना पड़ता है । यही एक सोच की क्यों न इस आपाधापी भरे जीवन में कुछ पल अपनों के साथ बैठ कर सुख दुःख के भागीदार बने !!All Rights Reserved