कवि
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Complete, First published Aug 27, 2016
कवि हूँ मैं,
कविताएं लिखता हूँ।
जानना चाहते हो मुझे तो मेरी कविताओं में देखो
हर इक शब्द में मैं अपनी कहानी लिखता हूँ।

ज़िन्दगी के जाल में उलझे उलझे ,
शब्दो के जाल बुनना सीख़ लिया।
न कोई सहारा मिला न ही कोई मदद मिली,
यूँ ही मुश्किलो को चुनना सीख़ लिया।
न मरहम मिला न ज़ख्म सिले,
चलते रहे ऐसे ही दर्द के सिलसिले,
अब मैं मन को ही समझा कर रखता हूँ ,
दिल में तस्सली और चेहरे पर मुस्कान सजा कर रखता हूँ।
मेरे दर्द की आह मेरे शब्दों की जुबान से सुनाई देती है,
ये कविताएं भी मुझे रो रो कर दुहाई देती हैं,
मत कर इतना सितम खुद पर
जा कह दे जो तेरे मन में है
क्यों ढूंढता है सहारा मेरे इन बेजान शब्दों में,
ये दुनिया अंधी है इसे तेरी चोट नज़र नहीं आती,
आखिर शब्दों की जुबान हर किसी को तो समझ नहीं आती।
मैं चुप था मैं चुप हूँ मैं चुप ही रहूँगा,
मैं आज भी मन की हर बात शब्दों के जाल में ही बुनुंगा।
कोई तो होगा ज
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