तुम हो!
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Complete, First published Nov 06, 2016
कुछ फ़ैसले अपने हाथ में भी तो होते हैं। उसे कभी नहीं बताने का...गुम हो जाने का...या कि यूँ मुस्कुराने का जैसे सब पहले जैसा ही है।
हम जो महसूस करते हैं उसे रोक नहीं सकते, मगर हम जो क़दम उठाते हैं, हम जो निर्णय लेते हैं, वो हमारे बस में हैं। 
मनचले इश्क़ के होने और ना होने के बीच वाले खाली जगह में जो भावनाएं दबी होती हैं, सुस्त - उदास पर दिल को छू जाने वाली - 'सर्वाइवल' के लिए जरूरी, उसी भावनाओ के सादे पन्ने पर उकेरी गई कुछ कविताएँ।
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