दलित साहित्य आंदोलन
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Ongoing, First published Oct 30, 2013
वैदिक काल में ऋग्वेद के पुरुष सूक्त से जो वर्ण व्यवस्था चली, वह आज भी जारी है। शिक्षा और जागरुकता के अभाव में दलित इससे वंचित रह गये।’ 

-एमएन श्रीनिवास , प्रख्यात समाज शास्त्री 
( सन् 1966 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘सोशलाजिकल स्टडी आफ मार्डन इंडिया’ में )
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ये एक नकारात्मक व्यक्ति के बारे में एक नकारात्मक कविता है। चाहे ऑफिस हो या घर , हर जगह नकारात्मक प्रवृति के लोग मिल जाते है जो अपनी मौजूदगी मात्र से लोगो में नकारात्मक भावना को पनपाने में सक्षम होते हैं। इस कविता में ये दर्शाया गया है कि कैसे इस तरह के व्यक्ति अपनी नकारात्मक प्रवृत्ति के कारण अपने आस पास एक नकारात्मकता का माहौल पैदा कर देते हैं। इस कविता को लिखने का ध्येय यह है कि इस तरह के व्यक्ति विशेष ये महसूस करें कि उनकी इस तरह की प्रवृतियाँ किसी का भी भला नहीं कर सकती हैं । इस कविता को पढ़ कर यदि एक व्यक्ति भी अपनी नकारात्मकता से बाहर निकलने की कोशिश भी करता है तो कवि अपने प्रयास को सफल मानेगा।
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