जो कुछ में कहने की गुस्ताखी कर रहा हू. वो मेरा अधिकारिक क्षेत्र नही है, न ही मेरा कोइ ओफिसियल गुरू है जिसके नाम पर मे यह लेख समर्पित कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाउ. ना ही मेरे पास एसी कोइ सिद्धी या चमत्कार है जिससे मे आप सब को अचंभित कर दू और उसकी आड लेकर कुछ भी ऊल-जलूल बोलू और आप उसे परम सत्य मानकर ग्रहण करने को मजबूर हो जाये. नाही मे यह मानने के लिये आपको मजबूर कर रहा हू की मेरा कहा कथन ही सत्य है. जो कुछ भी मे कहने जा रहा हू उसके पीछे किसी की भावनाओं को आहत करने की मंशा नही है. यह तो एक मंथन है जो लगातार दिमाग मे चल रहा है. जो भी मेरे चारो तरफ हो रहा है उसे लाजिक और अनुभव की कसोटी पर कसते हुये उसे समझने की कोशिश है. इश्वर ...सदियों से हम इस एक शब्द के सत्य को समझने का प्रयास कर रहे है. पर जो अनंत है क्या सच मे उसे पूर्णता से समझा जा सकता है. चलिये एक बार फिर कोशिश कर के देखते है. हAll Rights Reserved