एक बूंद ने कहा, मुज़ बूँद से, कहां चली तू यूँ मंडराए ? कहाँ जाना है तुज़े दूर, बन-ठन इतनी संवराए, जरा ठहर ,तू बूंद मुझे देख गुर्राई फिर मस्ती में मैं चल पड़ी, वो खुद पर इतराए, एक आवारे बादल ने रोका रास्ता मेरा, कहा क्यों हो तुम इतनी बौराए ? ऐसा क्या इरादा तेरा, जो हो इतनी मुस्कुराइ? हट जा पगलेे,रोक मत मुझे, बोली मैं जरा मुस्काए, जो ना माने बात तू मेरी, तो लो दूँ मैं तुझे गिराए, चल पड़ी फिर मैं निचे, एक दूसरी बूंद से टकराई, छोटी बूंद मुझे देख घभराइए,All Rights Reserved