मौका था, दस्तूर था,
करने चला था मै बात,
कहना उन्हें भी बहुत कुछ था,
किसे पता था इतनी लम्बी लगेगी वो रात।
मैंने सोचा कह लेने दू उन्हें उनकी बात,
फिर पूछूंगा उनसे उनकी खैरियत,
पर उनके मन में तो थे ऐसे कुछ खयाल,
जिन्होंने खुरेद दिए मेरे दिल में कई सवाल।
सोचा था मैंने वो भी समझेंगे थोड़ा,
पर उनकी बातों ने तो मुझे कहीं का ना छोड़ा,
उनके लिए शायद होगी ये छोटी बात,
पर मेरे दिल में कर चुके थे ये दाग।
उनकी बात सुनकर हो गया मै चुप,
ऐसा लगा मेरा कोई हिस्सा हो गया हो गुम,
उस रात मुझे हुआ था काफी दुख,
काफी समय तक मिट गई थी मेरी भूक।
मै भी देखा करता था सपने सुहाने,
पर अब मुझे मिले थे ना सोने के दस बहाने,
किसको सुनाता अब मै अपनी बात,
डर लगता था करने में कोई नई शुरुआत।
आज भी करता हूं मै खुद पे सवाल,
मेरी ही शायद रह गई थी कोई कसर,
नहीं कर पाता हूं मै कुछ अच्छा, ना ही है कोई पहल,
घबराता हूं ना जाने क्या करेंगे वो असर।
ना कहा मैंने जो था मेरा हिस्सा,
कह देता अगर तो ना जाने क्या होता ये किस्सा,
उनकी थोड़ी सी बात ने दिया ये कैसा गम,
बस यही चाहता हूं जहां भी हो खुश रहो तुम।
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EK BAAT
PoetryWe all get hurt sometime or the other. Sometimes even the smallest of the things that are said to us, hurt us. And most of the times it hurts because it comes out of that person's mouth who you thought you could trust, you could confide in. Things c...