नवम्बर की बात है| मैं दीवाली मनाने दादी के घर बेगूसराय गयी| एक दिन जब मैं दादी के साथ मंदिर से निकल रही थी तो देखा मंदिर के चबूतरे पर मेरे बाबा के परम मित्र गोपालनाथ बैठे थे| दादी वहां मौजूद सभी लोगों को प्रसाद बाँट रही थी| जब मैं उन्हें प्रसाद देने के लिए आगे बढ़ी तो दादी ने मना कर दिया और तिलमिला कर बड़बड़ाने लगी,"खबरदार जो तूने उससे बात तक की मनु,कहें देती हूँ|"
मुझे दादी का गुस्सा कुछ समझ नहीं आया| पिछली होली में तो हम गए थे गोपाल बाबा के यहाँ, फिर दीवाली आते आते ऐसा क्या हो गया| मैंने मामले की जड़ तक जाने की ठानी |
अगले दिन दिवाली के दिए रंगने का कार्यक्रम हुआ| तभी मैं सबसे आँख बचा कर गोपाल बाबा के घर चली गई|
मुझे याद था कि वो अकेले रहते थे और उनके तीनों लड़के अमरीका में बस गए थे| तीन या चार साल में कोई भी एक बार आकर अपने पिता की हाल खबर ले लिया करता था|
मैंने दरवाज़े की घंटी बजायी, दरवाज़ा खुला और बाबा ने मुझे चौखट पर ही गले से लगा लिया|
"अरे सुनती हो, मनु आयी है " उन्होंने अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा|
अंदर पहुँच कर मैंने देखा कि कुर्सी पर कोई महिला बैठी थीं| वो उनकी हमउम्र लगती थी|मुझे देखते ही मुस्कुराने लगी|
"आप न आये तो मैं आ गयी |" मैंने कुर्सी पर बैठते हुए कहा|"बेटी,तुम्हें कौटिल्य ने नहीं बताया ",बाबा ने पूछा|
"क्या?" मुझे कुछ हैरानगी हुई|
"अब हम दोस्त नहीं रहें", उन्होंने रुमाल से आँखें पोछते हुए कहा |
मुझे काटो तो खून नहीं| मेरे बहुत पूछने पर भी जब वे कुछ न बोले तो मैंने उनके पास बैठी महिला से पूछा| उन्होंने बाबा को विवशतापूर्ण नज़रों से देखा जैसे की कुछ विनती की हो|
"बिटिया, यह मारिया हैं| हम कालेज में साथ पढ़ते थे| मैं इतिहास की कक्षा में था और यह केमिस्ट्री की| मुझे आज भी याद है मैंने पहली बार मारिया को एकाउंट्स ऑफिस के बाहर खड़ा देखा था| गुलाबी सूट, रफल में बंधे बाल, शायद ही कोई पत्थर होता जो न पिघलता| मैंने तो उसी दिन इश्क़ की अदालत में मुकदमा दर्ज़ करा लिया था| इनकी उन झुकी नज़रों ने ना जाने मुझ पर कौन सा जादू किया कि मैं अगले ढाई साल बस एक मुलाकात को बैचैन रहा| दो घंटे केमिस्ट्री लैब के बाहर खड़ा होता बस पांच मिनट की झलक के लिए| यह जिस गोलगप्पे वाले पर जाती थीं मैंने उससे दोस्ती करली कि क्या पता बात हो जाये| मेरी दिक्कत यह थी कि इधर तो पूरे कालेज में मैं आशिक हो गया और इन्हें मेरे होने तक का एहसास नहीं था फिर एक दिन .." बाबा ने मारिया की तरफ देखा और हल्की सी मुस्कराहट उनके होंठो को चूमने लगी|
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पहला प्यार
Romanceआपको प्यार कब हुआ था? क्या उनके ख्याल मात्र से आपको मुस्कान आ जाती है? क्या आपका वो इश्क़ मुकम्मल हुआ या बस एक कसक दे गया? आपकी पहली नज़र उनपर पड़ी थी तो वो एहसास कैसा था? इन्हीं सब एहसासों को एक साथ पेश करती है गोपाल नाथ की कहानी| उन्हें प्यार हुआ...