आज कुछ समय निकाल कर टहलने निकल पड़ी मै,
शहर से थोड़ा दूर जो गांव बसा हुआ है,
आज तो उसके रस्तो पर भी अपने कदमों के छाप छोड़ आई मै,
पता नहीं था कि रास्तों में इतने हमसफ़र मिलेंगे।
कुछ बात शाम से हुई,
कल फिर अपनी नारंगी चुनर लहराने का वादा किया है उसने,
कुछ बीच में खेत मुझे अपनी ओर बुलाने लगे,
उनके धान की खुशबू को गले से लगा कर आई मै,
जब आसमान मुझे देख मुस्कुराया,
मैंने अपने दोनो हाथो को खोलकर उसे भी प्यार जताया।
कुछ दूर जब पहुची तो पंछी वापिस आ चुके थे,
अपने दिनभर की थकान की माला वाच रहे थे,
उस माला के गीतों को सुनकर आई हूं मै,
कुछ पेड़ो ने भी मुझे आज हाथ दिखाया,
मैंने मुस्कुराकर अपनी आंखे नीची कर ली।
लौटते समय मेरे साथ सूर्य भी लौट गया,
और बस ऐसे ही, अलविदा कहते हुए,
कल दोबारा आने का एक वादा इन सब से कर के आई हूं मै।
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कुछ दूर चल कर आई हूं मै।
PoetryIt's a short story in a form of a poetry। An unplanned walk with nature which pushed me to an unexplored way where I personified nature and may be vice versa।