हिन्दी कहूँ या फिर हिन्दुस्तानी, यह भाषा जो आप पढ़ और समझ रहें हैं, नाता तो मेरा इससे करीबी ही है । जब बचपन में किसी आवाज़ ने आपको सबसे पहले 'अ' से अनार या फिर 'क' से कबूतर बोलना और समझना सिखलाया हो तो शायद आप भी मेरी तरह इससे प्यार करने लगें । दादी की कहानियाँ हों या फिर पड़ोसियों की गप्पें , एक अलग ही बात है मेरी हिन्दी में जो किसी से भेद भाव नहीं करती। अंग्रेजी हो या फिर उर्दू , सभी को अपने आँचल में ले कर चलना आता है इसे। या यूं कहिए इसे बोलने वालों को आता है ये। भाषा का मूल उद्देश्य भावनाओं की अभिव्यक्ति है, यह समझ बस मेरे हिंदी-भाषियों को ही है। तभी तो हमें डिस्टेम्पर हो या डेन्टिस्ट, दोनों से काम निकलवाना आता है। इससे पहले की मैं इस भाषा को लिखे प्रेम पत्र में कुछ और जोड़ूँ या फिर घटाने की सोचने लगूँ , मैं उसी विषय पर आता हूँ जिसके लिए भाषा का आविष्कार हुआ था : कहानियाँ ।
हम इंसानों की बात ही अलग है; जानवर भी हुए और नहीं भी। कभी-कभी तो लगता है ये कमबख्त भाषा ही इन सबके पीछे है, नहीं तो किसी पेड़ की डाली पर या फिर कहीं नदी किनारे किसी झोपड़ी में अपने बाल सुलझाने का मज़ा ही अलग होता। हर चीज़ का नामकरण हो चुका है, कहीं कोई जमीन का टुकड़ा उपजाऊ है तो कहीं बंजर। रंग भी बहुतेरे हैं, नाम न जानो तो अलग आफत है। और अगर किसी सम-जीवी का नाम भूल जाओ तो फिर से अपने पूर्वजों की तरह भिन्न भिन्न ध्वनियों के उद्घोष से उनका सम्बोधन करना पड़ता है। ऐसे में पता चलता है की हम सब एक दूसरे के भाई बहन ही हैं। कई दफा तो मुझे लगता है कि "वसुधैव कुटुंबकम" का प्रचार करने वाला प्राणी जरूर ही कोई भुलक्कड़ रहा होगा । खैर, ऐसे ही एक नाम के पीछे हमारी कहानी शुरू होती है।
महेश बाबू मेरे कोई करीबी तो नहीं थे पर फिर भी उनसे एक अजीब सा नाता बन गया था। कठपुतली जैसे शरीर पे मोटे ऐनक लगाए, हर किसी से एक जुगनू जैसे मिलना उनकी फितरत सी थी । मैं जिस झिझक के साथ उनके पास पहुँचा था वो एक एकांतवासी से उसका एकांत छीनने सी थी। हालांकि मुझे इस मोहल्ले में आए हुए कुछ ही दिन हुए थे पर मुझे उनके ठहाकों के साथ ज़िंदादिली के दर्शन सरेराह मिल ही जाते थे। एक दूसरे की तरफ देख कर एक औपचारिक मुस्कान ही अभी तक हमारी शब्दावली का हिस्सा थी । अब, उनके घर के दरवाज़े के सामने मैं मानो थम सा गया था। अपनी किस्मत और सामाजिक परिवेश को कोसते हुए आखिरकार मैंने घंटी बजा ही दी।
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Project Aardvark
Short StoryA collection of stories written at whim, in the two languages I know: Hindi and English