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...."राजीव..! कहाँ थे तुम..? तुम्हें पता भी हैं कितनी परेशान थी मैं तुम्हारे लिए | कमसे कम एक कॉल तो कर देते | और तुम फोन क्यूँ नहीं उठा रहे थे ?"
"अरे भई..! धीरे-धीरे...! काम डाउन..! सभी सवाल यूँही दरवाजे पर पूछोगी या मुझे अंदर भी आने दोगी..?"
शिवांश को उठाए राजीव घर के अंदर आ गया | टाय लूज करते हुए सोफ़ेपर बैठ गया | शिवांश राजीव के गले में बाहें डालकर उसकी गोद में बैठा उससे बातें कर रहा था | अब तक तो उसने सिर्फ व्हिडीओ कॉलिंग के जरिये अपने पापा से बातें की थी पर अब पहलीबार वो उससे रूबरू हो रहा था |
"आय मिस यू पापा..!"
"आय मिस यू टू..! कितना बड़ा हो गया मेरा टायगर |" - राजीव ने उसे चुम लिया |
तभी शिवानी ने पानी लाकर दिया | राजीव ने पानी लिया |
"हम्म..! कितना तड़प रहा था मैं तुम दोनों से मिलने | पलभर के लिए लगा जैसे हम कभी नहीं मिल पाएंगे | अब तो मौत भी आ जाय तो ग़म नहीं |"
"मरे हमारे दुश्मन..! क्यूँ ऐसी बातें करते हो ? अब मैं तुम्हें कहीं जाने नहीं दूँगी |" - शिवानी राजीव के करीब जाकर उससे लिपट गयी |
"मॅडम...! बस हफ्तेभर के लिए छुट्टी मिली हैं | और तुम तो जानती हो लंडन के क्या हालात हैं |"
"बस..! हफ्तेभर ? पर तुम आये कैसे ? लंडन आने जानेवाली सारी फ्लाइट्स कॅन्सल हैं |"
"मैंने पहलेसे ही टिकट बुक कि थी | तुम्हें सरप्राइज जो देना था | और देखो..! लकिली लास्ट फ्लाइट मेरी थी |"
"और तुम्हारा लगेज..?"
"नो आयडिया..! एअरपोर्ट पर अफरातफरी का माहौल था | पता नहीं कहाँ गया | मेरा तो मोबाईल भी कोई लेके भाग गया | बस..! तुम दोनो से मिलने की ईतनी जल्दी थी कि, कंप्लेंट भी दर्ज नहीं कर पाया | जैसे तैसे वहाँ से निकल आया | बहोत थक गया हूँ |"
"ओह..! गॉड..! देखो तुम रेस्ट करो हम कल बात करते हैं |" - शिवानी अंदर जाने के लिए मुड़ी | तभी राजीव ने उसका हाथ थामे उसे रोक लिया |
"अरे..! नहीं..! सुनो तो, शिवा..! मैं घर जाना चाहता हूँ | माँ-बाऊजी गुज़र जाने के बाद कितने सालों से घर बंद पड़ा हैं |"
"अरे..! वाह..! यहाँ थे तब कितनी बार कह चुकी हूँ तुमसे चलो चलते हैं आख़िर मुझे भी तो देखने दो कहाँ बिता तुम्हारा बचपन.. पर तब नहीं गए और जनाब को अब जाना हैं ?"
"तब नहीं तो अब सही..! चलो चलते हैं |"
"व्हॉट..? पागल हो गए हो..? आराम करो कल देखते हैं |"
"शिवा..! प्लीज..! देखो कार तो तुम चलाओगी मैं आराम कर लूँगा | बस तुम थोड़े बहोत कपड़ें ले लो हम अभी निकलते हैं |"
"बट..! राजीव..!"
"कम ऑन जान..!"
राजीव ने आखिर शिवानी को जैसे तैसे मना ही लिया | शिवानीने अपने और शिवांश के कपड़े और कुछ जरूरी सामान बॅग में पॅक कर लिया | निकलने से पहले मॉम को मॅसेज कर दिया और राजीव के घर लौट आने की खुशी भी ज़ाहिर की | शिवानी ने सोचा चलो ईसी बहाने शहर की भीड़ भाड़ से दूर राजीव के साथ कुछ पल बिताए जाय | लंडन की जॉबवाला ऑफ़र जब आएगा तब शायद फिर वक्त ना मिले राजीव का घर देखने का ? और फिर दोबारा आने का मौका दोनों को ना मिल पायेगा ? लेकिन शिवानी उसे लंडन में जॉब मिलने वाली बात राजीव से छुपाकर रखना चाहती थी | वो उसे सरप्राइज दे कर खुश करना चाहती थी | राजीव का घर शहर से थोड़ी दूर छोटेसे गाँव नुमा कस्बे में था | बस चार या पांच घंटे का सफ़र था | सफ़र में राजीव और शिवांश बातें करते-करते सो गए | शिवानी गाड़ी चला रहीं थी | उन दोनों को एक नज़र प्यार से देख उसे सुकून भरा अहसास हो रहा था |
भोर होते-होते वे घर पहुंचे | शिवानीने नेव्हीगेशन बंद कर दिया | घर काफी बड़ा था | चारों ओर हरी घांस उग आयी थी | घर के पिछे घने जंगली पेड़ और छोटासा तालाब भी था | शिवानी रातभर ड्रायविंग कर थक चुकी थी | उसने घर पहुँचते ही सो जाना पसंद किया | शिवांश को उसके करीब सुलाकर राजीव ने घर की थोड़ी बहोत साफसफाई कर ली | किचन साफ कर लिया और फ्रेश होकर बचपन की यादें ताज़ा करने वो बाहर निकल पड़ा | थोड़ी दूर जाते ही रास्ते में एक दस-बारह साल का लड़का उसे मिला |
"अंकल..! क्या आपने यहाँ किसी सफेद डॉगी को देखा हैं ?"
"नहीं तो...! मैं बस अभी यहाँ आया हूँ | क्या तुम यहीं रहते हो ?"
राजीव की बात सुनकर मुँह फुलाते हुए बिना जवाब दिए वो लड़का वहाँसे चला गया | राजीव बस उसे जाते हुए देखते रह गया | उस लड़के ने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा | थोड़ा घूमकर राजीव जब घर लौटा तब तक शिवानी उठ चुकी थी और शिवांश को नहला रहीं थी | ये देख राजीव को मस्ती का आइडिया आया और उसने शॉवर ऑन किया शिवानी पूरी तरह भीग गयी वो राजीव पर गुस्सा होकर उसे पकड़ने भागी, उन्हें देख शिवांश ठहाके लगाकर हँसे जा रहा था | शिवानी ने राजीव को भी भिगो दिया | तीनों पानी में मस्ती करने लगे | वो दिन हँसी मज़ाक में ऐसे ही बीता | रातको खाने में शिवानी ने मॅगी बना ली | दिनभर की मस्ती खेलकूद से थकाहारा शिवांश राजीव की गोद में ही सो गया | उसे बेडरूम में सुलाकर जब राजीव बाहर आया तो उसने देखा शिवानी के मिज़ाज कुछ बदले बदले से थे | उसने वाईन के दो प्याले भर लिए और राजीव के हाथ में एक प्याला थमा दिया | "चियर्स..!"
"चियर्स..! ये कहाँसे मिली तुम्हें..?"
"वहाँ किचन की अलमारी में पड़ी थी |"
"ये वाईन बाऊजी को पसंद थी |"
"लगता हैं तुम्हारा मुड़ बनाने के लिए ये वहाँ ईतने सालों से पड़ी थी |"
"मुड़ बनाने के लिए..? मतलब..?"
"अब क्या मतलब भी मुझे समझाना होगा..? लगता हैं ईतने सालों से तुम्हारी प्रॅक्टिस छूट गई हैं | सच में लंडन में कोई नहीं मिली ?"
"ओफ़ओ...! शिवा..! तुम भी न..!" - राजीव को हंसी आ रही थी | शिवानी ने उसके पास जाकर उसे किस किया | और राजीव के जिस्म में मानो जैसे बिजली दौड़ उठी | उसने शिवानी को कसकर अपनी बाहों में समेट लिया | दोनों एकदूजे में डूब गए | वो रात पलभर में हसीन हो गयी |
दूसरे दिन सुबह राजीव को वो लड़का फिर से तालाब के किनारे दिखाई दिया | राजीव दौड़कर उसकी ओर भागा |
"हे..! तुम पानी में गिर जाओगे |"
"अंकल..! आपको मेरा डॉगी मिला..?"
"हाँ..! मिला..!"
"आपने देखा ब्रूनो को..? कहाँ हैं वो ?" - खुशी से उसकी आंखें चमक गयी |
"पहले अपना नाम बताओ |"
"बिट्टू..!"
"कहाँ रहते हो तुम बिट्टू..?"
"पता नहीं..! पर यहाँ नहीं रहता |"
"फिर यहाँ कैसे आ गए..?"
"मम्मा,डॅडा हम घूमने निकले थे | रात को पेट्रोल पंप पर रुके | कार में मैं और ब्रूनो थे, मैं सोया था | मम्मा कुछ खाने का सामान लेने गई और डॅडा पेट्रोल पंप वाले से बात कर रहे थे कि, अचानक दो गुंडे कार में घुस गए और हमारी कार चुराकर भाग गए |"
"ओह..! तो उन गुंडों ने तुम्हें यहाँ छोड़ दिया ?"
बिट्टू ने गर्दन हिलाकर 'हाँ' कह दिया |
"अब बताओ ना अंकल कहाँ हैं मेरा ब्रूनो ?"
तभी शिवानी की आवाज़ से दोनों चौंक गए | "राजीव..! राजीव..! कहाँ हो तुम यार..!"
"यहाँ हूँ..! अभी आया..!" - राजीव की नज़र हटी और बिट्टू भागते हुए चला गया | राजीव उसे आवाज़ देने लगा पर वो नहीं रुका और घने पेड़ों के पीछे ओझल हो गया |
वहाँसे जाने का दिन आखिर आ ही गया | निकलने से पहले राजीव ने बिट्टू को खोजने की कोशिश जरूर की पर वो न मिला | हताश होकर राजीव शिवानी और शिवांश को लिए शहर की तरफ रवाना हो गया | एकदूसरे के साथ बिताये कभी न भुलनेवाले यादगार लम्हें अपने साथ संजोए राजीव को अब लौटना था | वापस शहर की तरफ लौटते हुए बिछड़ने के ख़याल से दोनों की आँखे नम थी | जैसे ही शहर में एंट्री की शिवानी को फोन कॉल्स आने लगे पर उसने किसी का कॉल रिसिव्ह नहीं किया | दोनों चुप थे | कार एअरपोर्ट की तरफ बढ़ी | राजीव ने कार से उतरते ही शिवांश और शिवानी को एकबार गले से लगाया और कुछ न कहते हुए चुपचाप वहाँ से चला गया | शिवानी मायूसी से घर लौटी मॉम उसीका इंतजार कर रही थी |
"कहाँ हैं राजीव..?"
"पापा तो चले गए |"
"क्या ? चला भी गया ..?"
"हाँ..! मॉम.. बस हफ्तेभर की छुट्टी मिली थी |"- शिवानी गुमसुम सी अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ी | उसकी नज़र टेबलपर पड़ी जहाँ मॉम ने दिए हुए डीव्होर्स पेपर पड़े थे | शिवानी गुस्सेसे उन्हें फाड़कर फेंकने के लिए आगे बढ़ी मग़र उसने देखा कि राजीव के साईन की जगह 'आय लव्ह यू' लिखा था | ये देख शिवानी के आँसू झर-झर बहने लगे | की तभी फोन की घंटी बजी | मॉम ने आकर शिवानी को फ़ोनपर बात करने के लिए कहा |
"शिवानी..! लंडन से फोन हैं | तुमसे बात करना चाहते हैं |"
"मुझसे...? कौन हैं..?"
"शायद एम्बेसी से कॉल हैं |"
शिवानी ने फोन लिया पर उस तरफ से उसने जो सुना वो हैरान कर देनेवाला था |
"बट ही ईज हिअर..!!"-शिवानी की आवाज़ कांप रहीं थी |
"व्हॉट..?"
शिवानी ने फोन कट कर दिया और वो सोच में डूब गई |
"क्या बात है ? शिवानी..! कौन था..? क्या हुआ..? कुछ बोलती क्यूँ नहीं ?"- मॉम उसे पूछे जा रही थी पर शिवानी सहम सी गई थी | कि, तभी उसके मोबाईल पर मेल आया | एम्बेसी से मेल था राजीव के बारे में, उसका पासपोर्ट, कुछ सामान से भरी बॅग, उसका वॉलेट जिसमें शिवांश और शिवानी की फ़ोटो थी, इंडिया जाने के लिए निकाला हुआ एअर टिकट इन सब दस्तावेज के फोटोज और साथ में खून से लथपथ राजीव की डेड बॉडी की इमेजेस देखकर शिवानी सुन्न पड़ गयी | मॉम की तो चीख़ निकलते निकलते रह गयी | मतलब यहाँ आने से पहले राजीव मर चुका था इस सदमे से शिवानी सर पटककर रोये जा रहीं थी | मॉम उसे संभालने की कोशिश कर रहीं थी पर शिवानी के आँसू अब न जाने कब थमेंगे ?
राजीव के चेहरे पर धीमी मुस्कान थी | वो अपने घर के नजदीक उसी रास्तेपर चल रहा था कि अचानक,
"अंकल..! आपको ब्रूनो मिला..?" - वही लड़का था |
"बिट्टू..! तुम..? कहाँ थे..? आओ चलो ब्रूनो से मिलते हैं |" - चलते चलते दोनों में यहाँ-वहाँ की बातें शुरू हो गई |
"अंकल..! आप कहाँ जा रहें हो..?"
"मैं..? (हँसकर)...(सामने डूबते हुए सूरज की तरफ ईशारा करते हुए..) बहोत दूर.. वहाँ |"
"वहाँ...? ईतनी दूर..? पर आप जाओगे कैसे..?"
"भगवान खुद आएंगे लेने |" - तभी एक जगहपर आकर दोनों रुक गए |
"देखो...! तुम्हारा ब्रूनो.." - एक पेड़ से टकराकर वो मर चुका था और कुछ दूरी पर बिट्टू की भी लाश पड़ी थी | उन हैवानों ने कार तो चुराई पर जाते-जाते बिट्टू और ब्रूनो को चलती गाड़ी से बाहर फेंक दिया था | अपने आपको भी उसी हालत में देख बिट्टू को समझ आ गया कि, वो अब ईस दुनिया से हमेशा के लिए जा चुका हैं | बस..! उसे ब्रूनो के लिए बुरा लग रहा था | उसे देख बिट्टू रोने लगा |
"बिट्टू..! यहीं ज़िन्दगी का सच हैं |"- राजीव ने उसके सर पर प्यार से हाथ रखा |
"पर ब्रूनो ने उनका क्या बिगाड़ा था ?"
"वो गुंडे तो बस अपना काम कर रहें थे | समझो के गॉड ने तुम्हें और ब्रूनो को जितना वक्त देना था वो खत्म हो गया | गेम ओव्हर..!"
"तो क्या अब मुझे ब्रूनो कभी नहीं मिलेगा |"
"तुम दिलसे चाहो तो तुम्हें वो सब मिल सकता हैं जो तुम पिछे छोड़ आये हो, सिवाय जिंदगी के |"
"सच..? (बिट्टू जोरसे आवाज देने लगा) ब्रूनो..! ब्रूनो...!!!"
तभी ब्रूनो की आवाज़ से बिट्टू चौंक गया | उसने देखा ब्रूनो उसकी ओर दौड़ते हुए आ रहा हैं | बिट्टू खुशी से झूम उठा और ब्रूनो की तरफ बढ़ा | दोनों एकदूसरे के साथ ख़ुश देख राजीव का दिल भर आया | कि, तभी आसमान को चिरती हुई सुनहरी किरन उन दोनों पर गिरी और बिट्टू ने राजीव को अलविदा किया | उस रोशनी में बिट्टू और ब्रूनो आँखों से ओझल हो गए | राजीव भी उनके पीछे पीछे उस रोशनी में समा गया |The End
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बिन तेरे
General Fictionकिसीसे प्यार करो तो इस हद तक करो के उसे मिलने के लिए कुछ भी कर गुजर जाए | नमस्ते..! कृपया वाचकों से नम्र निवेदन हैं कि, ईस कहानी के अंत तक सारे भाग पढ़े | क्योंकि ईसका अंत आपको निश्चित रूप से चौंका देगा |धन्यवाद..!