किरीटी ने 7 साल तक गुरुकुल में अस्त्र - शस्त्र विद्या सीखी. साथ ही उसने सभी शास्त्रों व आधुनिक ज्ञान का भी अर्जन किया.
अब वह गुरुकुल से सभी शिक्षा लेकर बाहर आ गया है लेकिन जब उसे पता चला कि दुनिया में उसका कोई भी नहीं है ना उसका कोई घर है. ना मां बाप हैं. ना भाई - बंधु, रिश्तेदार हैं. किरीटी ने अपने लिए एक बहुत अच्छा काम सोचा. उसके पास केवल 1 जोड़ी वस्त्र ही थे और था उसका अस्त्र - शास्त्र का ज्ञान और शास्त्रों का अटूट ज्ञान.
किरीटी ने अपना जीवन एक योद्धा के रूप में गुजारने का निश्चय किया. लेकिन वह स्वतंत्र रहना चाहता था. किरीटी पैदल ही आगे बढ़ता जा रहा था. अचानक उसने देखा कि एक जगह पर बहुत बड़ी भीड़ लगी हुई है. पहलवानों की कुश्ती हो रही है. साथ ही एक उद्घोषक कह रहा है कि जो भी इस मुकाबले को जीतेगा उसे 1000 स्वर्ण मुद्राएं मिलेंगी.
किरीटी भी मुकाबले में शामिल हो गया. इस समय मुकाबले का अंतिम चरण था. एक भयंकर और लंबा चौड़ा पहलवान सभी पहलवानों को हराकर जीत का ताज पहनने की वाला था. अचानक उसने घोषणा की -- है कोई माई का लाल, जो उसे हरा सके.
किरीटी मैदान में कूद पड़ा. उस पहलवान और किरीटी में जमकर मल्लयुद्ध होने लगा. कुछ देर तक तो पहलवान किरीटी पर हावी रहा. लेकिन अब किरीटी पहलवान की शक्ति समझ चुका था और उसके दांवों को भी समझ चुका था.
किरीटी ने अचानक पहलवान को उठाया और एक ही दांव में उसे उल्टा कर उसका सर जमीन से टकरा दिया. पहलवान बेहोश हो गया. चारों तरफ किरीटी की जय जयकार गूंज उठी. किरीटी को तुरंत एक स्वर्ण मुकुट, 1000 सोने की अशर्फियां इनाम के तौर पर दी गई.
किरीटी आगे बढ़ता गया. 500 अशर्फिंयों से उसने एक सुंदर मकान खरीदा. कुछ नौकर - चाकर रखे. कुछ जमीन खरीदी. घर का सामान खरीदा. राशन - पानी, मकान में भरा. नए-नए वस्त्र और आभूषण लिए.
सौ मुद्राओं से उसने एक सुंदर अरबी घोड़ा, सुंदर मजबूत लोहे का कवच और कुछ अस्त्र-शस्त्र वगैरह खरीदे. अब उसके पास 400 मुद्राएं बची हुई थी. 100 मुद्राएं खुद के खर्चे के लिए रखकर उसने 300 मुद्राएं बैंक में जमा कर दी. 300 मुद्राओं का प्रतिमाह का उसे अच्छा ब्याज मिलने लगा.
किरीटी ने 10 - 20 योद्धा भी अपने साथ रख लिये और उन्हें तनख्वाह पर काम लेने लगा. अब उसके पास एक छोटी सी 10-12 आदमियों की सुसज्जित सेना थी.