श्रीकैलाश राष्ट्र के संविधान का पहला संशोधन:
प्रत्येक नागरिक को स्वयं को परमशिव के रूप में बोध करने का अधिकार है। प्रत्येक के साथ परमशिव की तरह व्यवहार करना चाहिए और दूसरों को परमशिव के रूप में माना जाना चाहिए।
महावाक्य -
शास्त्र प्रमाण के अनुसार
1. ऐतरेय उपनिषद् 3.3
प्रज्ञानम् ब्रह्म
चेतना ही परमशिव है !
2.छान्दोग्योपनिषद् 6.8.7
तत्त्वमसि
आपही वह परमशिव हैं!
3. बृहदारण्यक उपनिषद | 1.4.10
अहं ब्रह्मस्मि |
मै ही ब्रम्ह हूं !
4. माण्डूक्य उपनिषद | 1.2
अयं आत्मब्रह्म |
मैं आत्मब्रह्म हूँ !
5. सोमशम्भुपद्धति | श्लोक 35
शिवोहमादिसर्वज्ञो मम यज्ञे प्रधानता।
अत्यर्थ भावयेदेवं ज्ञानखड़करो गुरुः ।।
शिवोहं = शिव अहम् = मैं शिव हूँ !
6. सूर्योपनिषत् |
सूर्य आत्मा जगतस्थस्थुशंका:
सूर्य भगवान वह आत्मा है जो चेतन और निर्जीव दोनों संसार पर राज करते हैं !
हंसः सोऽहमग्निनारायणयुक्तं बीजम् |
इस सूर्य उपनिषद में सोहम, बीज में से एक होने के नाते 'मैं वही हूँ' की घोषणा करते हैं!
7. तैत्तरीय संहिता यजुर्वेद :
नारायण परो ध्याता ध्यानं नारायणः परः |
जो व्यक्ति नारायण का ध्यान कर रहा है वह वास्तव में नारायण ही है !
8. कामिक आगम | श्लोक 112
समचम्य शुचिर्भूतो सकलीकृतः विग्रहः |
पूजा से पहले उसे सकलीकरण के माध्यम से परमशिव का रूप धारण करना चाहिए !
9. तैत्तरीय उपनिषद |
हा 3 वु॒ हा 3 वु॒ हा 3 वू
अ॒हमन्नम॒हमन्नम॒हमन्नम्
हे अद्भुत! मैं भोजन हूँ! इस उपनिषद में, ऋषि भृगु इस अनुभूति के साथ प्रारंभ करते हैं कि भोजन ब्रह्म है। उन्हें वरुण द्वारा आत्मज्ञान की ओर ले जाया जाता है।
ज्ञान प्राप्ति पर, ऋषि भृगु को ज्ञात होता है कि वह वास्तव में भोजन हैं (ब्रह्म के रूप में स्वंय का बोध किया) !
10. ईषा उपनिषद | श्लोक 16
तेजो यत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ पुरुषः सोहमस्मि |
यह श्लोक सोहमस्मि के साथ समाप्त होता है - मैं वही हूं !
परमशिवोहं परमशिवोहं परमशिवोहं !
आप परमशिव हैं आप परमशिव हैं आप परमशिव हैं !