कहानी-वो पेड़© भाग-1
लेखक-पिंगाक्ष त्रिपाठी
बात उस समय की है जब मेरी पहली पोस्टिंग मेडिकल अफसर के रूप में पिथौरागढ़ के एक गाँव के सरकारी हॉस्पिटल में हो गई थी।उस समय उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था।मेरी नई नौकरी लगी थी।अभी अपना एम.बी.बी.एस. पूरा किया था और इंटर्नशिप के लिए जानबूझ कर ऐसा स्थान चुना था जहाँ शांति हो और पी.जी.की तैयारी भी आराम से हो पाए।अभी मेरी शादी नही हुई थी न ही करने का कोई प्लान था।घर वाले इतनी दूर जाने को मना कर रहे थे पर मुझे पहाड़ बहुत अच्छे लगते हैं।यह अस्पताल पिथौरागढ़ जिले की धनौरा तहसील में पड़ता था जो मुख्य शहर पिथौरागढ़ से लगभग दो घंटे के जंगली रास्ते पर था।सवारी थी या तो बाइक या पैदल।पहली बार जब मैं जॉइन करने गया तो हॉस्पिटल के इकलौते कम्पाउण्डर हेमंत नेवालिया जी मुझे लेने पिथौरागढ़ आए थे।उन्होंने मेरा समान एक आदमी से भिजवा दिया और बोला,”सर जी,स्वागत है आपका।यहाँ सालों बाद कोई डॉक्टर आया है।अभी तक तो मैं ही छोटा-मोटा इलाज कर देता था।यहीं पास में ही मेरा गाँव है,पर हॉस्पिटल में रूम है।उसी में रुक जाता हूँ।आपका कमरा भी साफ़ करा दिया है।मैं वहीं खाना बनाता हूँ।आप का भी बना दूंगा सर जी!“
मुझे हेमंत जी बड़े मज़ेदार आदमी लगे।बात करते समय अपनी आँखें मिचमिचाते रहते थे,पर चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती थी।
मैं हेमंत जी के साथ हॉस्पिटल के रास्ते पर चल पड़ा।हेमंत जी पूरे रास्ते मुझसे बात करते रहे।
हेमंत-सर आप लखनऊ से आए हैं?सुनते हैं अच्छा शहर है,नवाबों का!
मैं-हाँजी आपने सही सुना है!
हेमंत-ये सबसे सीधा रास्ता है हॉस्पिटल जाने का!गाँव वाले तो जंगल से हो कर बहुत जल्दी पहुँच जाते हैं!वो रास्ते भी छोटे हैं!
मैं-तो उधर से ही चलते हेमंत जी!
हेमंत-सर जी उधर से आप नही जा पाएंगे!जंगली रास्ता है और कभी-कभी जानवर भी मिल जाते हैं!
जिस रास्ते पर हम जा रहे थे,था तो वो भी जंगली रास्ता,पर उसे थोड़ी कंक्रीट डाल कर थोड़ा समतल बना दिया गया था!दोनो तरफ़ घना जंगल था।बीच-बीच में जंगली जानवरों की आवाज़ें भी आ जाती थीं!मई का महीना था फिर भी वहाँ एक स्वेटर पहनने जितनी ठंड थी।
मैनें पूछा-हेमंत जी!जब अभी ये हाल है तो सर्दी में तो बर्फबारी होती होगी?
हेमंत जी रुक गए और एक पत्थर पर बैठते हुए बोले,सर्दी में तो इतनी-इतनी बर्फ़ जम जाती है,सारे रास्ते बंद हो जाते हैं,पर अपना हॉस्पिटल सेवा हमेशा चालू!...सर जी थोड़ा आराम कर लीजिए!हमारी तो आदत है रोज़ आने-जाने की,पर आपकी साँस फूल रही है!
सच में या तो ऊँचाई अधिक होने के नाते या ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते के कारण मेरी साँस फूलने लगी थी।मैं बैठ गया और बोतल निकाल कर कुछ घूँट पानी पिया।मुझे लगा यहाँ तो ग्लूकोज़ पाउडर ले कर चलना पड़ेगा!
हेमंत जी-सर जी!एक बात बोलूँ?आप मुझे बस हेमंत बुलाइये!हेमंत जी अच्छा नही लगता!
मुझे हेमंत जी की बात पर और उनके चेहरे के उतार-चढ़ाव को देख कर हँसी आ गई!
मैं-अच्छा भाई हेमंत,पर अभी आपने कहा लखनऊ नवाबों की नगरी है,तो कुछ नवाबियत हम भी ले कर चलते हैं!वहाँ की ज़ुबान भी उतनी ही मीठी है जितना आपके पहाड़ का शहद!
हेमंत जी मेरी बात सुन कर हँस दिए।तभी मुझे कुछ दूर पहाड़ी पर एक लंबे से पेड़ पर कोई आकृति नज़र आई!लगा कि कोई पतली-लंबी सी औरत है और वो मेरी ओर देख कर जैसे हँस रही है!या तो उसका चेहरा जला जैसा लग रहा था या वह कुछ विद्रूप थी!वह पेड़ जहाँ हम बैठे थे वहाँ से लगभग पाँच सौ मीटर पहाड़ी के ऊपर था।यह दृश्य मुझे बहुत साफ़ तो नही दिखा क्योंकि मेरे चश्मे के शीशे पर भाप जम गई थी,पर उस दृश्य को देख कर मैं काँप गया।पर जब मैंने अपना चश्मा साफ़ कर हेमंत जी को वो दृश्य दिखाया तब तक वहाँ कोई नही था।
हेमंत जी अपनी पहाड़ी भाषा में कुछ बोले जो मुझे समझ नही आया।पर इतना साफ़ पता चल रहा था कि हेमंत जी थोड़ा घबरा से गए थे और वहाँ से जल्दी आगे बढ़ना चाहते थे।
हेमंत-अरे सर जी!ये गाँव की औरतें लकड़ी बीनने जंगल में घूमती रहती हैं!उन्ही में से कोई सूखी लकड़ी खोजते हुए पेड़ पर चढ़ गई होगी!आइए सर जी थोड़ी देर में अंधेरा भी होने लगेगा!अभी अस्पताल थोड़ा दूर है!
कह कर हेमंत जी खड़े हो गए और मैं भी उनके पीछे हो लिया।मैनें ध्यान दिया कि हेमंत जी की बोलती अब पूरे रास्ते बंद थी और वो जैसे कोई मंत्र बुदबुदाते जा रहे थे और बार-बार पीछे मुड़ कर देख रहे थे,जैसे कोई हमारे पीछे चल रहा हो।पर उस रास्ते पर हम दोनों के सिवा और कोई नही था।
-पिंगाक्ष त्रिपाठी