वो पेड़(भाग-2)

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कहानी-वो पेड़ (भाग-2)
    लगभग एक घंटा और चलने पर हम लोग हॉस्पिटल पहुँच गए।मेरी हालत बुरी हो रही थी।मैदानी इलाक़े में और पहाड़ी इलाक़े में पैदल चलने में ज़मीन-आसमान का अंतर है।मेरी साँस बुरी तरह फूल रही थी।सामने हॉस्पिटल की बिल्डिंग देख कर लग रहा था कि किसी पुरातत्व की धरोहर है।सामने ही एक पुराना सा बोर्ड लगा था,’प्राथमिक स्वस्थ केंद्र,ग्राम धनौरा,जनपद पिथौरागढ़’।सामने तीन-चार सीढियां बनी थी और व्हीलचेयर या स्ट्रेचर के ले जाने के लिए एक रैंप बना था।सीढ़ियों के ऊपर लिखा था’कृपया लाइन से आएं’।हेमंत जी मुझसे बोले,”सर!पहले कुछ चाय-पानी कर लीजिए,फिर आपको पूरा हॉस्पिटल दिखाता हूँ!”इतना कह कर उन्होंने सामने का कमरा खोल दिया जिसमें एक मेज-कुर्सी, एक स्टूल और एक बेंच थी।हेमंत जी बोले,”आइए बिराजिये सर!यहीं पर आप मरीजों को देखेंगे!ज़्यादा समान तो नही है पर एक थर्मामीटर,एक बी.पी.मशीन,कुछ इमरजेंसी दवाइयां और ड्रेसिंग का सामान है!सब इसी आलमारी में है!”हेमंत जी ने सामने रखी लोहे की छोटी आलमारी की ओर इशारा कर के कहा।मैं जब कुर्सी पर बैठा तो लगा जान में जान आई!इतना चलने के बाद पूरा बदन टूट सा रहा था।तभी एक लड़का एक ट्रे में दो गिलास पानी,एक प्लेट में कुछ बिस्किट और दो प्यालों में चाय ले आया।
 हेमंत जी बोले,”सर जी,ये मेरा लड़का है,इसका नाम बीरेन है!अभी यहाँ के सरकारी स्कूल में पाँचवी में पढ़ रहा है!”फिर बीरेन से बोले,”सर को नमस्ते कर,यही नए डॉक्टर साहब हैं!”फ़िर हँसते हुए बोले,”सर जी!ये भी बड़े हो कर डॉक्टर बनना चाहता है!”
मैनें बीरेन को इशारे से पास बुलाया, वो बड़े संकोच में थोड़ा पास आ कर खड़ा हो गया।मैनें बिस्किट की प्लेट उसकी ओर बढ़ाई, और बोला,”लो बीरेन,तुम अच्छे बच्चे हो,पहले तुम खाओ!”बीरेन ने सकुचाते हुए बिस्किट ले लिया।वो मेरी तरफ़ बड़े ध्यान से देख रहा था।शायद मेरा पहनावा,चेहरा-मोहरा और बोलने का लहज़ा उसके लिए नया हो।
  मैनें चाय की चुस्की ली और बिस्किट खाया, लगा जान में जान आई।हेमंत खड़ा था,मैनें उसे बैठने को  और चाय लेने को कहा।वो संकोच में बेंच पर बैठ गया।
मैं-भाई चाय तो बड़ी अच्छी बनी है,किसने बनाई?
हेमंत-इसी ने बनाई सर।ये रात में मेरे पास ही रुकता है।पढ़ाई भी करता है और मेरी मदद भी।मेरा घर भी यहाँ से पास के गाँव में ही है।सुबह स्कूल चला जाता है।घर पर इसकी माँ और छोटी बहन है।
तब तक मैं थोड़ा सामान्य हो चुका था और चाय भी खत्म हो चुकी थी।
मैं-चलिए हेमंत जी,आपका हॉस्पिटल देख लें!
हेमंत जी ने सबसे पहले मुझे जनरल वार्ड दिखाया,जहाँ तीन-चार मरीजों को भर्ती करने की सुविधा थी।फ़िलहाल सभी बिस्तर खाली थे।उसके बगल का कमरा हेमंत जी का था जिसमें एक तखत, रजाई-गद्दा,और छोटा सा किचन था।अगला रूम मेरा था।इसमें एक पुराना डबल बेड,रजाई-गद्दा,एक कुर्सी-मेज और लगा हुआ बाथरूम था।बिस्तर के बगल में एक छोटी सी खिड़की थी जो बंद थी।
हेमंत-बस सर यही है हमारा हॉस्पिटल।कुछ और समान और दवाएं मंगाने के लिए मैनें बड़े ऑफिस को लिखा है।देखिए कब तक सैंक्शन होता है।आपने जॉइनिंग तो दे दी न सर?
मैं-हाँ भाई, सबसे पहले वही किया,फिर आपको बुलवाया था।
कुल मिला कर वो एक पुरानी सी इमारत थी,जिसमें केवल रैंप ही नई बनी दिख रही थी।बाकी पूरी इमारत मरम्मत और पुताई माँग रही थी।
मैं-हेमंत जी!इस इमारत में तो कुछ काम कराना होगा,तभी रहने लायक होगी!
हेमंत-बिल्कुल सर जी,अब आप आ गए हैं,धीरे-धीरे सब हो जाएगा।इस जगह कोई आना ही नही चाहता था।कह कर हेमंत ने फिर वही चेहरा बना लिया और मुझे फिर हँसी आ गई।
    गनीमत थी कि इतनी दूर जंगल के बीच भी हॉस्पिटल तक बिजली के तार बिछे थे।लाइट चौबीसों घंटे आती थी।पर यदि कोई फॉल्ट हो जाए तो कई दिन गायब भी हो जाती थी।हॉस्पिटल एक छोटे टीले नुमा स्थान पर बना था,जहाँ से चारों तरफ़ का नज़ारा बड़ा ख़ूबसूरत लगता था।एक तरफ़ तो कोई गाँव था,जिसमें सात-आठ कच्चे-पक्के मकान थे।उसके आस पास कुछ सीढ़ी नुमा खेत थे।खेती तो उतनी अच्छी नही थी पर वहाँ के लोगों की आजीविका पशुपालन से ही अधिक थी।बाकी तरफ़ घने पहाड़ी वृक्ष थे।मौसम साफ़ रहने पर कुछ बर्फ़ से ढकी चोटियाँ भी नज़र आ जाती थीं।कुल मिला कर बहुत ही मनोरम स्थान था।हेमंत जी एक-दो दिन में पिथौरागढ़ शहर जाते थे और ज़रूरत का सामान ले आते थे।
   बीरेन बहुत बुद्धिमान लड़का था।स्कूल से आ कर सारा समय हॉस्पिटल में बिताता था।प्राथमिक चिकित्सा की सारी जानकारी उसे थी।बड़े हो कर डॉक्टर बनना चाहता था।मैं कभी-कभी उसे पढ़ा भी देता था।उस दिन वह अपनी गणित की पुस्तक ले आया और मुझसे कुछ प्रश्न हल करने के तरीके पूछने लगा।हेमंत जी सब्जी लेने गाँव गए थे।मैं सवाल हल कर ही रहा था कि दरवाज़े पर बड़ी तेज़ दस्तक हुई।मुझे लगा कोई मरीज़ आया होगा।बीरेन दौड़ कर दरवाज़े तक गया और फ़िर उसकी चीख़ सुनाई दी।मैं दौड़ कर वहाँ गया तो देखा बीरेन डरा-सहमा सा फ़र्श पर बैठा था।और कोई नही था।मैनें उससे पूछा,”कौन था?क्या हुआ तुम्हे?”
बीरेन-वो आई थी,दरवाज़ा पीट कर ग़ायब हो गई!
मैं-कौन आई थी?
बीरेन डर के मारे कुछ बोल ही नही पा रहा था।मैनें उसे उठा कर बिस्तर पर लिटाया।देखा तो उसका शरीर गरम था।उसे तुरंत दवाई और पानी दिया।तभी हेमंत जी हाथ में सब्जी का थैला ले कर आ गए।
  मैनें उन्हें सारी बात बताई।उन्होंने अपनी गाँव की भाषा में बीरेन से कुछ बात की और उनके चेहरे पर चिंता की रेखाएं साफ़ नज़र आने लगीं।मैनें पूछा,”क्या बात है?आख़िर कौन आया होगा इस समय जो केवल दरवाज़ा पीट कर चला गया?
हेमंत जी-वही है सर!यहाँ तक भी आ गई!इसका कुछ इलाज करना पड़ेगा।मैं कल ही पुजारी जी से बात करता हूँ।
मैं-अरे कौन थी?कुछ मुझे भी बताएंगे?
हेमंत जी-वही,जिसे आपने आते समय पेड़ पर देखा था!मैं आपको बताना नही चाह रहा था!हेमंत जी बहुत गंभीर हो गए।
हेमंत जी-सर!इस औरत की बड़ी लंबी कहानी है,या कह लीजिए थी।आपको पूरी बात बताता हूँ।
   तभी बीरेन ने हेमंत जी से कहा,बाबा,मुझे चाय पीनी है!मैनें देखा उसका टेम्परेचर थोड़ा नार्मल हो रहा था।
शेष-क्रमशः
-पी.शाण्डिल्य

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⏰ पिछला अद्यतन: Jul 24, 2022 ⏰

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