जरा गौर फरमाइए आप,आपके आसपास के लोग व आपके अन्य जानने वाले लोग अपनी दिन-प्रतिदिन की जिंदगी में क्या करते दिखाई दे रहे हैं? कोई सुबह ऑफिस जाने की जल्दी में है माताएं बहनें भोजन पका रही हैं, ख़बरों को फैलाने में सहयोग कर रही हैं व किशोर आनंद की तलाश में भ्रमित है।
क्या आपने कभी ठहर कर सोचा है कि यह दुनिया नदी के एक दिशा में बहाव के समान इतनी रफ्तार से किस ओर बढ़ रही है इसका अंत क्या है व उद्देश्य क्या है? आखिर इस बहाव में शामिल लोग पहुंचना कहां चाहते हैं?
'माया' आनंद प्रिय वस्तु को पा लेने की चाहत, भोजन का स्वाद, अधिक धन एकत्रित हो जाने की चाहत यही सब माया कहलाते हैं। यह चीजें आपको इनको पा लेने के लिए लोभित करती हैं। जो ज़ाहिर है कि मृत्यु के पश्चात इनमें से किसी भी वस्तु का एक कण मात्र भी आपके साथ ना जाएगा। तो इन स्थूल वस्तुओं की चाह करने का क्या फ़ायदा?परमात्मा जिन्हें हम परम शक्ति व परम पिता परमेश्वर भी कहते हैं। एक ऐसी शक्ति ,एक ऐसा उज्जवल प्रकाश एक ऐसी तेज रोशनी जिससे हमारी उत्पत्ति हुई है व मृत्यु के पश्चात हम सभी का सूक्ष्म शरीर जिसे हम आत्मा कहते हैं वह इस परम शक्ति में जाकर विलीन हो जाता है जिसे हम मोक्ष का नाम भी दे सकते हैं।
परमात्मा को प्राप्त हो जाना व मोक्ष को हासिल करना इतना आसान नहीं। हमारे जन्मों-जन्मों के कर्म के आधार पर मोक्ष की प्राप्ति निश्चित होती है।
परमात्मा ही परमपिता है परंतु यह विचार आपके मन में भी आता होगा कि हमारे जीवन में कुछ बुरी घटनाएं होती है तो कुछ अच्छी घटनाएं भी घटित होती है परंतु जब हमारे माता-पिता हमें किसी भी तरह की परेशानी, दुख, पीड़ा का सामना करते देख बचपन में हमें उन परेशानियों से निजात दिला देते हैं तो परमपिता जो सबके पिता हैं, परमात्मा हैं, वह हमारे जीवन में दुख, दर्द, पीड़ा, संघर्ष आखिर क्यों देते हैं? भला जो सबका पिता है वह अपने बच्चों का बुरा कैसे चाह सकता है? जिस प्रकार हमारे माता-पिता को हमसे दूर होने के बाद बेचैनी होती है वह जल्द से जल्द हमसे मिलने के लिए व्याकुल रहते हैं ठीक उसी प्रकार परमपिता परमेश्वर भी हम सभी बच्चों को अपने से दूर नहीं रखना चाहते। जीवन में परेशानियां संघर्ष हमारे पिछले कर्मों का फल होता है जिन्हें हम कई बार अपने पिछले जन्म में ना भोग कर इस जन्म में भोगते हैं । व इस जन्म के बुरे कर्मों का फल भी हमें यहीं भोगना पड़ता है। बुरे कर्मों का भोग पूर्ण हो जाने के बाद हमारे सत कर्मों की गिनती शुरू होती है। जीवन का ज्ञान व आत्मज्ञान का बोध होने के बाद मनुष्य के भीतर की अंतरात्मा मे सम्मिलित ईर्ष्या, घमंड व मोह का विनाश हो जाता है व व्यक्ति भगवत प्राप्ति की ओर बढ़ जाता है यहीं से उसके मोक्ष प्राप्ति का पहला चरण शुरू होता है । ईश्वर की कृपा मनुष्य पर बरसना शुरू हो जाती है क्योंकि यह समय होता है जब व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति की ओर अपना चरण बढ़ा चुका होता है व अब मृत्यु के बाद वह स्वर्ग या नर्क के भोग न भोगकर बल्कि परमपिता परमेश्वर में जाकर विलीन हो जाएगा व हमेशा-हमेशा के लिए परम पद को प्राप्त हो जाता है। परमात्मा हमारी आत्मा के बगैर अधूरे हैं इसे हम एक उदाहरण से समझते हैं- आपने अक्सर देखा होगा जब आपके शरीर के किसी हिस्से में चोट लग जाती है व रक्त बहता है व वहां की त्वचा छिल जाती है उस दौरान हमें काफी पीड़ा होती है परंतु कुछ समय बाद कह लीजिए कि कुछ महीने बाद आप उस चोट लगे हुए हिस्से पर देखते हैं और वह दोबारा भर जाता है वह जैसा चोट लगने के पहले होता है ठीक उसी तरह दोबारा हो जाता है । क्या आप नई त्वचा को घाव की जगह पुनः लगाते हैं ?नहीं ना? हमें बगैर भ्यासे हमारा घाव भर जाता है। उसी प्रकार मूल शक्ति (परम शक्ति) भी घाव के सामान अधूरी है वह वह पुनः तब पूरी होती है जब आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है परम शक्ति के कण , हमारी आत्माएं उस शक्ति में जुड़ जाती हैं। यहां पर रक्त का बहाव हमारे जीवन में प्रकट होने वाले संघर्ष व परेशानियों से संबंधित है। हम जितना अपने परम उद्देश्य से भटके हुए उससे दूर भागेंगे उतना ही कष्ट हमें भोगना पड़ेगा।जिस प्रकार मृत्यु के पश्चात हमारा स्थूल शरीर मिट्टी में मिल जाता है ठीक उसी प्रकार हमारे अंदर विलीन एक और शरीर होती है जिसे हम सूक्ष्म शरीर या आत्मा के नाम से जानते हैं मृत्यु के पश्चात यह सूक्ष्म शरीर भी एक सूक्ष्म शक्ति परमात्मा को प्राप्त हो जाता है व यह जीवन मरण का चक्कर चलता रहता है जब तक मनुष्य की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती। यह पृथ्वी, मृत्युलोक है, एक ऐसा स्थान जहां आत्मा को अवसर मिलता है अपने कर्मों को सुधारने का परंतु मनुष्य शरीर को प्राप्त होने के बाद आत्मा अपना परम उद्देश्य भूल जाती है व इस माया के जाल में फस कर अपने कर्मों को सही दिशा में ले जाने से विफल होती है। परंतु अगर समय रहते मनुष्य को अपने उद्देश्य का बोध हो जाए व भगवत प्राप्ति को प्राप्त करने में लग जाए तो परमात्मा और आत्मा के मिलन को कोई नहीं रोक सकता। हमारे जीवन का मूल उद्देश्य सिर्फ गृहस्थ जीवन को संभालना या माया के आनंद में रमे रहना नहीं है बल्कि समय रहते अपनी वास्तविकता का बोध हो जाना व भगवत प्राप्ति में लग जाना ही है।
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आत्मा, परमात्मा व मोक्ष
Spiritualयह पुस्तक मेरे सोच विचारों पर आधारित है। इस पुस्तक का उद्देश्य है आपको आपके यथार्थ का बोध कराना व आपके आधार को आपके समक्ष रखकर इस दुनिया की वास्तविकता को समझाना। हम कौन हैं? हमारा इस जीवन में आने का क्या उद्देश्य है? क्या हमारा जन्म इस दुनिया में कर...