मंदिर में सरस्वती जी की एक सुंदर सी मूर्ती चमक रही थी। इसे देखकर एक पत्थर बोल उठा, हमे दोनो तो एक ही प्रकार के पत्थर है तो फिर लोग तुम्हे क्यों पूज रहे है? क्या खास है तुममें?
मूर्ति बोली, "जब मूर्तिकार तुम्हारे पास आए थे तो तुम्ही ने उसे अपने ऊपर नक्काशी करने से मना कर दिया। पर मैंने वो दर्द सहा है, क्योंकि मुझे उम्मीद था की जरूर कुछ अच्छा होगा मेरे साथ।"
अरे हम तो फिर भी इंसान है इतना सहनशक्ति तो हममें भी होना चाहिए जैसे इस मूर्ति में है।
एक बार की बात है, "कितना संघर्ष करेगी यह बेचारी तितली इस खोल से बाहर आने में" सोचा एक नन्हा बालक। चल पड़ा उसकी मदद करने, मासूम ने तोड़ दिया उसकी खोल। तितली तो बच गई पर फैला नही सकी उसके सुनहरे पंख।संघर्ष तो उसके जीवन में बहुत थी, उसी संघर्ष से ही तो वो प्रकृति की सबसे सुंदर जीव बनी।
अरे हम तो फिर भी इंसान है इतना संघर्ष तो हमे भी करना चाहिए जैसे इस तितली ने किया।
स्वयं श्री रामचंद्र भी दुविधा में पढ़ गई जब रावण ने सीता माता का अपहरण किया , लेकिन जिस प्रकार से उन्हों उस परिस्थिति का सामना किया वो तो हम जानते ही है।
और भगवान श्री कृष्ण को तो अपनी प्रेमिका से दूर होना पड़ गया था। सोचो उन्हें कितना दुख हुआ होगा!
अरे हम तो इंसान है, जीवन की चुनौतियां एवं रुकावटों का सामना कर सकते है जैसे इस भगवान श्री राम और श्री कृष्ण जी ने किया।
छोटे जीव, जन्तु, वस्तु से लेके भगवान तक सभी के जीवन में कठिनाई, चुनौतियां, रूकावटे , दुख आते ही रहते हैं, फिर हमारे जीवन में कैसे न आए? हमे उनका सामना अवश्य ही करना पड़ेगा, तभी हम आगे जाकर अपना लक्ष्य हासिल कर सकते है।
-तनीशा साहू
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