दुसरे का नुक्सान

442 8 4
                                    


                 महाराज सांतनु हस्तिनापुर के राजा थे. उन्हें देवनदी गंगा से देवव्रत नामक पुत्र था जो हर तरह से योग्य था. एक दिन महाराज सुन्दर स्त्री को देखें. उस स्त्री के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा. उस स्त्री ने अपना नाम सत्यवती बताया और बड़े ही मीठे स्वर में बोली," महाराज! में आपके प्रस्ताव की आभारी हूँ. लेकिन मेरी विवाह का फैसला मेरे पिता करेंगे. अगर आप मुझ से विवाह करना चाहते हैं तो आप कृपया करके आप मेरे पिता से मेरा हाथ मांगे. मेरे पिता पास के गाँव में रहते हैं और वे मछुआरों के मुख्या हैं.

                सांतनु सत्यवती के पिता से मिलें. अपना प्रस्ताव फिर से रखे. सत्यवती के पिता बोला," महाराज! आप से रिश्ता जुड़ना हमारे लिए शान कि बात है. परन्तु आप का एक दैविक पुत्र भी है. अभी तो हमारी बेटी महारानी बन जायेगी. लेकिन जब आप का पुत्र राजा बन जायेगा तो मेरी बेटी और उसके बच्चों का क्या होगा? यदि आप मेरी बेटी के पुत्रों को अपना उत्तराधिकार बनाने का वादा करते हैं तो मैं अपनी बेटी का हाथ आप के हाथ में दे दूँगा.

             राजा वहाँ से बिना कुछ कहे ही वहाँ से चले गए. तब से राजा बहुत उदास और चुप रहने लगे. आखिरकार हर तरह से उपयुक्त अपने पुत्र से उसका अधिकार कैसे छीन सकते थे? देवव्रत अपने पिता के सारथी से पूछ-ताछ किया. सब कुछ जानकर वह खुद सत्यवती के पिता से मिले. वह अपनी शर्त फिर से देवव्रत के सामने रख दिया. देवव्रत अपनी राज्याधिकार को छोड़ने के लिए तैयार हो गये. पर मछुवारों के मुखिया को उतने में भी तस्सल्ली नहीं हुई. वह फिर बोला, "युवराज! आप तो अपना वादा पूरा करेंगे. इस बात का संदेह नहीं हैं पर कल को आप के पुत्र यदि मेरे नातियों से राज्य छींन लिया तो भी कोई फ़ायदा नहीं हैं. इस पर देवव्रत अपनी दूसरी प्रतिज्ञां ली." मैं आज से आजीवन भ्रह्मचर्य का व्रत का पालन करूँगा."   

      देवव्रत अपने जीवन भर अपनी प्रतिज्ञाओं का पालन किया. उधर सत्यवती ने कमजोर पुत्रों को जन्म दिया. एक विवाह के पूर्व मृत्यु को प्राप्त किया तो दूसरा संतान  हीन ही स्वर्ग सिधार गया.


--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

सीख: जो दुसरे को बिना किसी कसूर का नुकसान करता हो उसके संतान को भी सुख प्राप्त नहीं होता है.


सीख देने वाले महाभारत और रामायण की लघु कहानियाँजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें