बृहस्पति के पास सारी विद्याओं की जानकारी है सिवाय संजीवनी विद्या के। यह राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य के पास है. जब भी देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध होता तो मारे गए राक्षसों को शुक्राचार्य जिन्दा कर देते. इससे देवताओं को बड़ी परेशानी होती थी. सब मिल कर इसका उपाय सोचे. देवताओं के गुरु बृहस्पति का बेटा है – कच। कच को शुक्राचार्य के पास शिष्य के रूप में भेजने का फैसला किया.
कच राक्षसों की राजधानी, वृषपर्व गया और शुक्राचार्य के आश्रम में पहुँच गया। कच शुक्राचार्य के पास गए और अपना परिचय दिया,"आचार्य!मैं गुरु बृहस्पति का पुत्र और गुरु अंगीरस का पोता। मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ. " उन दिनों यदि शिष्य काबिल हो, भले ही वो शत्रु का पुत्र हो, तो भी अपना शिष्य बनाने में हिचकिचाते नहीं थे. शुक्राचार्य ने कच को अपना शिष्य बना लियें.
कच बहुत ही अच्छा शिष्य साबित हुआ। वह जल्द ही सब कुछ सीखने लगा। वह आश्रम के कार्यों के अलावा शुक्राचार्य की बेटी देवयानी के कामों में हाथ बँटा देता। ज़ाहिर है वह शुक्राचार्य और देवयानी के प्रिय बन गया। यह राक्षसों को पसंद नहीं आया।
एक बार जब कच जंगल में जानवरों को चराने गया तो राक्षसों ने उसे मार डाला। शाम तक जब वो नहीं आया तो देवयानी परेशान हो गयी और अपने पिता को बताई। शुक्राचार्य अपनी दिव्य दृष्टि से जान कर कच को जिन्दा कर दिये। उसे जिन्दा देख राक्षसों को अच्छा नहीं लगा। वे अगली बार उसे मारकर छोटे-छोटे टुकड़े कर फेंक दिया। पर शुक्राचार्य जिन्दा कर दिये। इस तरह कई तरह से कच को मारने की कोशिश की परंतु हमेशा कच को जिन्दा कर लिया जाता.
अंत में परेशान हो कर राक्षसों ने कच को मार कर कर उसे जला दिया। उसकी राख शराब में मिला कर शुक्राचार्य को पिला दिया। देवयानी फिर अपने पिता को बतायी कि रात होने पर भी कच नहीं आया। शुक्राचार्य को अपनी दिव्य दृष्टि से सब कुछ पता चल गया.पर देवयानी कहाँ मानने वाली थी।
वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। वह बताई कि वह कच से प्यार करती है और उसके बिना वह जी नहीं सकती। .देवयानी शुक्राचार्य की इकलौती संतान है। उसकी इस हालात को देख नहीं सके। कच को जिन्दा तो कर दिए पर उसे अपने ही पेट में पा कर चौंक गएँ। तब उन्होंने शराब की बुराईयां गिनाई। अंत में कच को संजीवनी की विद्या सिखा दिए। कच गुरु के पेट को चीर कर बहार निकला। फिर उसने शुक्राचार्य को ज़िंदा कर दिया।
कच आश्रम से जाने की आज्ञा मांगी। गुरु ने दे दी। देवयानी उसे अपनी पत्नी बनाने का आग्रह की। इस पर कच कहा कि वह गुरु का शिष्य होने के नाते वह उसकी बहन हुई। अब तो वह खुद भी शुक्राचार्य केपेट को फाड् कर दुबारा ज़िंदा होने से वह उसका भाई हुआ। देवयानी के लाख समझाने पर भी कच नहीं माना। इस पर देवयानी उसे श्राप दी, " जिस विद्या के लिए तुम आये उसका असर तेरे हाथों नहीं होगा"।
लेकिन शुक्राचार्य कच की घर्मबद्धता से प्रभावित हुएं। उन्होने आशिर्वाद दिया कि भले ही वह खुद ना इस्तेमाल कर सके उसकी विद्या दूसरों को सिखाने काम आयेगी। इस तरह से कच वापस चला गया। वह संजीवनी विद्या बाकी देवताओं को सिखा दिया. पर उस विद्या का इस्तेमाल नहीं कर पाया।
सीख – यदि हम धर्म अनुसार सोचते और कार्य करते हैं तो घर्म खुद ही हमारी रक्षा करती है।
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सीख देने वाले महाभारत और रामायण की लघु कहानियाँ
Spiritualmoral stories from Indian Itihasas(history) ie Mahabaharata and Ramayana. These are those timeless classics which hold thier validity.