3D टीवी की आजकल बहुत चर्चा है. इन पर 3D मूवीस को देखने का मजा ही कुछ और है.लगता है जेसे सब कुछ सामने हो रहा हो, सामने से आती गोली लगता है जेसे सीने से पार हो जायेगी. हीरोइन के लहराते बाल जेसे आपके गालों को छू लेगें.
एसा केसे हो पाता है!
हमे विज्ञान मे बताया गया की अपनी दो आंखों के कारण अपने आस पास की दुनिया को हम त्रियामी देखते है और इसी वजह से दूरी का सही आकलन भी कर पाते है. पिक्चर पोस्ट्कार्ड, टीवी या फिर मूवी में दृशय फ्लेट दिखाई देता है, उनमे गहराई का अहसाहस नहीं होता क्योंकी वो दो आयामी है. इस कमी को पूरा करने के लिये फोटोग्राफी की अलग तकनीक विकसित की गई. एसे केमेरे बनाये गये जो हमारी दोनों आंखो के द्वारा देखे जाने वाले दृश्य को अलग अलग कैद करते है और फिर मंहगे त्रियामी टीवी पर विशेष चश्में से देखने पर हमे उस पर दिखाइ देता दृशय त्रियामी दिखाइ देता है.
यह एक पोलोराइड चश्मा होता होता है जिससे दांई आँख और बाई आँख अपने-अपने दृश्यों को ही देख सके और फिर हमारा मस्तिक उन दोनों दृशयों को एक साथ मिलाकर हमारे लिये त्रियामी दुनिया बनाता है. सिनेमा ने त्रियामी फिल्मे पर्दे पर दिखाने कि तकनीक इससे पहले ही विकसित कर ली थी. इसमे भी उन्हे पोलेराइड चशमे पहन कर देखा जा सकता है. हमे बताया गया की त्रियामी आभास हमारी दोनों आंखों से अलग अलग कोणों से बनने वाले ड्र्श्य की वजह से होता है. पर यह सच, पूरा सच नहीं है. आगे इस बारे में कुछ और लिखू. एक छोटा सा प्रयोग कीजिये
अपनी कोई भी एक आँख बंद कर अपने चारों ओर देखिये क्या अतंर महसूस हुआ ....कुछ खास नहीं ना! सभी कुछ अपनी जगह पर, वही गहराइ का अहसाहस् ...कुछ भी बदलाव नजर नहीं आया ना. फिर क्या कारण है की हमे पोस्ट कार्ड, टीवी, यामूवी के दृशय हमे फ्लेट दिखाई देते है? और एक आंख से देखाइ देने वाली दुनिया अभी भी हमे त्रियामी दिखाई दे रही है.
यह सच है की जब भी हम किसी दृशय को देखते है तो हमे त्रियामी अहसाहस दोनों आंखों के द्वारा अलग अलग कोणों से आंखों की रेटीना पर बनने वाली तस्वीर के कारण होता है. पर इसके साथ ही बचपन से ले कर अब तक हमने दृश्यों के बारे में अपनी जो समझ विकसित की है उसका उपयोग भी दिमाग दूरी के आकलन मे करता है. जेसे हमे मालूम है की नीला आसमान सबसे पीछे होता है पहाड उसके आगे. अगर एक के पीछे दूसरी वस्तु छुप रही है तो छुपने वाली वस्तु की दूरी पहले वाली से ज्यादा होगी. कुछ वस्तुओं के साइज का अंदाजा हमे पहले से ही होता है इसलिये हम उसके आभासी साइज से उसकी दूरी का अंदाज लगा लेते है. यह हमारे अंतरर्मन में इस तरह बसा हुआ है की एक आँख बंद होने पर भी हमे कुछ खास अंतर दिखाई नहीं देता.