बिरयानी BIRYANI

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"तुम्‍हारी माँ के हाथों में जादू है, जब भी मैं उनके हाथ की बनी कोई भी चीज खाता हूँ तो बस जी करता है खाता ही रहूँ, वाह.....! कितनी स्‍वादिष्‍ट बिरयानी है।" निमेष बिरयानी को स्‍वाद ले-लेकर खा रहा था और निशा उसके चेहरे को गौर से देख रही थी। निमेष के मुख पर मुस्‍कुराहट को देखकर वह अपनी मुस्‍कान को भी छुपा न सकी। निमेष बड़े चाव से बिरयानी इस तरह खा रहा था गोया छोटे बच्‍चे को उसकी मनपसंद कोई डिश मिल गई हो। निमेष की खुशी उसके गालों में पड़ रहे गड्डों से साफ झलक रही थी। चावल का एक दाना जब निमेष की मूछों में चिपक गया तो निशा ने बड़े प्‍यार से अपनी ओढ़नी को तर्जनी अंगुली में लपेटकर निमेष के मूछ पर लगे चावल के दाने को हटा दिया।

अलसुबह, स्‍वपनलोक में सैर कर रही निशा के चेहरे पर मुस्‍कान तैरने लगी। बेपरवाह होकर पूरे बिस्‍तर को घेर कर लेटी हुई निशा नींद में ही बुदबुदा रही थी। उसे जगाने के लिए आई माँ निशा को यूं नींद में मुस्‍कुराते हुए देखकर ठिठक गई, वह हैरत भरी निगाहों से निशा के चेहरे की भाव-भंगिमाओं को बड़े गौर से देख रही थी । उसे समझ में आ गया था कि निशा कोई बड़ा ही मीठा सपना देख रही है, तभी तो नींद में इतना मुस्‍कुरा रही है। माँ को बखूबी पता था कि बचपन से ही निशा की आदत है जब भी वह कोई सुहाना सा सपना देखती है तो नींद में मुस्‍कुराने लगती है। निशा का यूं नींद में मुस्‍कुराना माँ को बहुत भा रहा था, माँ चाहती थी कि निशा थोड़ी देर और सोई रहे पर दीवार पर टंगी घड़ी की सुइयाँ जैसे भागी जा रही थीं।

ऐ निशा.... ऊठ... सात बज गए है.....उठ ना.....! निशा की माँ ने निशा को बिस्‍तर से उठाते हुए कहा। सुबह-सुबह उसके चेहरे की ताजगी किसी छोटे बच्‍चे की तरह लग रही थी। माँ ने निशा के माथे को चूमते हुए कहा "उठ जा बेटा बहुत काम पड़ा है"। निशा मुस्‍कुरा रही थी, उसने अपनी आँखें बंद की और फिर मन ही मन मुस्‍कुराने लगी।

ऐसा कौनसा सपना देखा जो अब तक मुस्‍कुराए जा रही हो ! निशा की माँ ने निशा की आँखों में झांकते हुए पूछा।

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