विश्व रूपी रंगमंच में ,
मनुष्य मात्र एक कठपुतली है,
इनका खेल चलाने वाली डोर ,
प्रदर्शन रूपी जीवन के साथ मचलती है।सभी अपनी-अपनी,
भूमिका निभाते हैं,
कुछ लोग मसखरा बन
दूसरों को हँसाते हैं।सतरंगी कपड़े पहनकर ,
सबका जी लुभाता है,
अतरंगी नाच दिखाकर ,
उपहास का पात्र बन जाता है।आकर्षण के पीछे दौड़ते - दौड़ते ,
प्रसिद्धि को अपनाता है,
कठिन परिश्रम करते-करते,
अंत में, स्वयं को खोखला पाता है।झूठी मुस्कान पहनकर घूमना ,
अपने कष्टों को छिपाता है,
संसार को ख़ुशियों से भरना,
मसखरे का खेल कहलाता है।अजीब करतब दिखता है,
भीड़ में भी पहचाना जाता है,
मुख पर ललिमा का प्रकोप नहीं,
अपितु प्रेम के सागर की धारा है।मुखौटे पहन स्वाँग रचता है,
अपने सत्य को देख सिसकता है,
प्रस्तुति समाप्त होते ही,
मूर्खों का नरेश कहलाता है।स्वार्थी दुनिया की राह में चलकर,
कभी गुनगुनाता है,
अपने ज़ख़्म के निशान देखकर,
कभी डगमगाता है।समय को भी छलता है,
शिशु सा नादान है,
गिरकर ही संभालता है,
मसखरे की यही पहचान है।प्रतिष्ठित पद पर उसका स्थान नहीं,
भटकता है दुःख कि गलियों में,
किसी से उसे रंज नहीं,
खो जाता है खिलती कलियों में।दर्पण में इतना धैर्य नहीं,
अस्तित्व का प्रतिबिम्ब झलका सके,
बात सुनाऊँ एक धीर पुरुष की,
जो अपने दुखड़ों पर भी हँसा सके।खेल तो उसने अद्भुत खेला,
पर अश्रु से भर गया उसका प्याला,
अफ़सोस उसे किसी बात का नहीं,
काश दुनिया समझती उसे भी निराला।धन्यवाद !!! आशा है आपको पसंद आया।
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जीवन : एक मसखरे का खेल
PoetryThis poem is written in Hindi. As the title reads' जीवन : एक मसखरे का खेल ' implies that life is a joker's fame and game. Many a times life plays tricks with us and treats us like clowns and puppets where we have to play along so that we do not los...