आज आपको यह बात समझने में तनिक भी चूक नहीं करनी चाहिए कि जिंदगी में आप हर समय किसी भी कार्य को सही तरीके से कर पा रहें हैं या नहीं। क्योंकि यह बात हमें माननी पड़ेगी कि कुछ कार्य ऐसे भी होते हैं जो हमें जिंदगी के कुछ बातों को समझा जाती हैं।
इसी प्रकार कि प्रेरणादायक, रुचिकर कहानी आज आप पढ़ेंगे।
।मोहन और महेश कि कहानी।मोहन एक गरीब घर का लड़का था। जोकि महेश के साथ रहकर काम किया करता था और अपने जीवन को सही से चला पा रहा था। मोहन को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आया करता था। वह तनिक ही बात से गुस्सा हो जाता था। और उसी जगह पर महेश उसके गुस्से को सांत करने के लिए रोज उस से आधे घंटे बात करता/समझाता था। कि गुस्सा करने से किसी और का नहीं बल्कि खुद का ही नुक़सान होता है। मोहन, महेश के बातों को सिर्फ एक ही दिन तक समझ पाता और अगले दिन फिर से किसी बात को लेकर गुस्सा हो जाता।
महेश यह सब देखता और नराज होता था। और बोलता कि मोहन को इतनी गुस्सा आती क्यों है।
इतनी छोटी बातों को लेकर अगर यह गुस्सा करेगा तो ऐसे में सारे ग्राहक रूठ कर हमारे दुकान से कुछ नहीं बनवाया करेंगे। महेश रोज यही सोचता और परेशान रहता। कई बार महेश मोहन को समझाने कि भी कोशिश करी। पर मोहन को महेश की बातें तनिक भी समझ नहीं आती थी। महेश एक दिन अकेला बैठा एक टक मोहन को देख रहा था। और महेश मन ही मन यह सोच रहा था कि इसे अपने दुकान से हटा देते हैं। पर महेश ऐसा नहीं कर पाया क्योंकि महेश बहुत ही कोमल हृदय का था। उस मोहन के गरीबी पर तरस आ जाता था। एक दिन फिर से मोहन किसी बात को लेकर गुस्सा हुआ और गुस्से में ही कार्य कर रहा था। वह एक लकड़ी पर तेजी - तेजी से कील को मार रहा था। यह सब देख महेश उसको रोकना चाहा पर महेश को यह सब देख समझ आया कि मोहन आज सुधर सकता है। महेश बोला आज मैं इसको सबक सीखा के रहूंगा। यही सब सोच ही रहा था, कि एक चंचनाहट की आवाज जोर से सुनाई दी। जब महेश दौड कर वहां पहुंचा तो देखा कि मोहन हांथ पकड़ कर रो रहा था। और महेश देखा की वह कई कीलों को लकड़ी में घुसाने का प्रयास कर रहा था।
पर उसमें से कई कील टेंढ़े हो गए थे।इतने में भी मोहन का गुस्सा नहीं रुकता वह फिर से गुस्से मै दूसरी कील उठाता और जोर से उस कील पर
हथौंडे से मारता और फिर से दुर्भाग्यवश उसके हांथ पर लगता। और मोहन तेजी से चिला कर रोता और गुस्सा हो जाता। फिर से मोहन दूसरी कील उठाता और फिर से तेजी से मारता कील टेंढ़ी हो जाती थी और बार - बार मोहन के हांथ में लगता। यह सब महेश खड़ा हुआ सब देख रहा था। पर महेश प्रण ले लेता है कि आज यह कितना भी अपने शरीर का और कील का नुक़सान क्यों ना करले। मैं इसे नहीं रोकने वाला। और मोहन गुस्से में फिर से कील उठाता है। और फिर से तेज़ी से उस कील पर मारता है। और फिर से मोहन के हांथ में लग जाता है। मोहन सब कुछ छोड़ कर, अपने हांथ को पकड़ कर तेज - तेज से रोने लगता है।
और मोहन रोते हुए अचानक महेश के गले से लग जाता है। और रो रोकर बोलता है। कि आप सही समझाया करते थे, की गुस्से में अपना ही नुक़सान होता है। इस प्रकार से मोहन को बात समझ आ जाती है और वह दुबारा से गुस्सा नहीं करता।
और मोहन के गुस्से ना करने कि वजह से आमदनी भी अच्छे से होने लगी, और काम भी।