पछतावा

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"क्या मैं भी आपके साथ चल सकता हूँ............बोलो ना मम्मी........प्लीज..........आप तो मुझसे दूर होने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे......फिर आज मुझे अकेला छोड़ कर क्यों जा रहे हो......."श्रवण दहाड़े मार कर रो रहा था। उसने मजबूती से अपनी मम्मी का हाथ थाम रखा था, और वह एकटक अपनी माँ के चेहरे को निहार रहा था। सफ़ेद पड़ चूका चेहरा अनेकों झुर्रियों से ढका हुआ था, सुनी आँखों के नीचे स्याह काले निशान और शरीर पर बने अनगिनत निशान अपनी वेदना सुना रही थी। आँखे आसमान की और निहारती शून्य में ताक रही थी। श्रवण के स्मृति पटल पर कई घटनाएं चलचित्र की तरह घूमने लगीं।

श्रवण...........बहुत ही प्यार से उसकी माँ शीतल ने उसका यह नाम रखा था, क्यूंकि उसे उम्मीद थी की उसका बेटा रामायण कालीन शरद की तरह ही उनका सत्कार करेगा। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत दीन थी, परिवार कर्ज में डूबा हुआ था। किसी तरह रात दिन लोगो के घरो में बर्तन मांझकर वह अपने परिवार का पालन पोषण करती थी। उसका शराबी पति उसकी हाड़तोड़ मेहनत की कमाई को ले जाकर शराब पीने में खर्च कर आता और वह मन-मसोस कर रह जाती। वह चाहती थी की श्रवण पढ़-लिखकर ऊँचे पद पर आसीन हो और इस गरीबी के दलदल से मुक्त हो जाए, इसी कारण वह पैसो को अलग अलग जगह छिपा देती थी ताकि उसके पति की नजर उनपर ना पड़े। इस बात पर अक्सर उसका पति उसके साथ मारपीट करता था, उसके सुकोमल शरीर पर चोटों के अनगिनत निशान बन चुके थे, फिर भी वह उसे एक फूटी कौड़ी भी नहीं देती थी। सारा दिन उसका पति गायब रहता था और देर रात उधारी की शराब पीकर घर आता था। किसी तरह वह रात दिन मेहनत कर श्रवण की स्कूल फीस भी भर्ती थी और कर्जा भी चुकाती थी।श्रवण को गरीब होने के कारण उसके स्कूल के बच्चे बहुत तंग करते थे, इस कारण बहुत छोटी उम्र से ही उसके मन में यह बात घर कर गयी थी की जो गरीब होता है वह सिर्फ दुत्कार के योग्य होता है।उसके बाल मन पर घर में नित्य होती मार-पीट का नकारात्मक प्रभाव पड़ता था।ज्यादा शराब पीने के कारण श्रवण के पापा का लिवर खराब हो गया, इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। अब उसका पति दिन रात घर के कोने में एक खाट पर पड़े अपने कर्मो पर अफ़सोस करता और अपनी मौत का इंतजार करता रहता था। पूरी जिंदगी इतने दुःख दर्द झेलने के बावजूद भी शीतल ने आखिरी क्षणों तक अपने पति की बहुत सेवा की। जिस दिन उसके पिता की मृत्यु हुई, मृत्यु से कुछ क्षण पूर्व उसने श्रवण को एकांत में बुलाया और कहा," बेटा मैंने तेरी माँ के साथ बहुत अन्याय किया है........मेरे इतने अत्याचारों के बाद भी उसने मेरी बहुत सेवा की है..........वो देवी है बेटा....उसकी पूजा करना हमेशा......." और इन्ही आखिरी शब्दों के साथ उसके प्राण पखेरू उड़ गए। समय बितता गया, प्रखर बुद्धि श्रवण हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आता था।उसकी कड़ी मेहनत रंग लायी और बैंक में उच्च अधिकारी के पद पर कार्यरत हो गया। शीतल ने चैन की सांस ली, उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया। लेकिन शायद भगवान को अभी उसकी और परीक्षा लेनी थी। श्रवण के मन में जो उसके बचपन की घटनाओ का नकारात्मक प्रभाव पड़ा था, उस बात को वो भुला न था। उसे अपनी माँ के गरीब परिवार से होने पर शर्म महसूस होती थी। वह उससे नौकरो की तरह बर्ताव करता, व कभी कभार हाथ भी उठा देता। किसी काम में थोड़ी सी भी गलती होने पर वह उसे दो दो दिनों तक खाना न देता था। वह बेचारी पुत्रप्रेम के कारण सब कुछ चुपचाप सहन कर लेती थी। श्रवण को अब अपने पिता की मौत का कारण भी माँ ही दिखाई देने लगी, उसे यकीन हो गया की उसके पिता का उसकी मम्मी को पिटने के पीछे का कारण यही था क्यूंकि वह उसके इरादों से परिचित थे। अब तो वह आये दिन बात बेबात अपनी माँ पर हाथ उठा देता। दिन बीतते गए, शीतल दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही थी, फिर भी उसे अपने से ज्यादा श्रवण की ही चिंता रहती। उसे पक्का विश्वास था की उसका भटका हुआ बेटा एक न एक दिन उसके पास वापस लौट आएगा।उसके सान्निध्य के बदले वह हर तरह के जुल्म सहने को तैयार थी।कुछ समय पश्चात श्रवण ने एक अमीर घर की लड़की देखकर शादी कर ली। उसने अपनी माँ का परिचय एक गरीब नौकरानी के रूप में अपनी पत्नी से करवाया। शीतल की आँखों से आंसुओ की अविरल धारा बह निकली, परन्तु उसने इसे भी हर चीज की तरह स्वीकार कर लिया। श्रवण को अपनी माँ का गरीब होकर भी उसके ऐशो-आराम से भरे आशियाने में रहना अब अखरने लगा। एक दिन उसने उन्हें कह ही दिया की अब उनका गुजारा यहाँ नहीं हो सकता। शीतल के पैरो के नीचे से जैसे जमीन खिसक गयी, इतने अत्याचार जो उसने सिर्फ अपने बेटे के साथ के लिए सहे थे वे सब व्यर्थ गए। जिस बेटे को उसने अपना सुख-दुःख सब भूल कर पढ़ाया और अपने पैरो पर खड़े होने के काबिल बनाया वो आज उसे बाहर का रास्ता दिखा रहा था। वही श्रवण जो कभी उससे एक पल को भी दूर जाने पर दर जाता था आज उसे ही दूर जाने को कह रहा था। अब उन्हें यकीन हो चला था की उनके भूले भटके बेटे को कोई वापस नहीं ला सकता, फिर भी उसने एक आखिरी प्रयास करने की ठानी। उन्होंने उसे यकीन दिलाया की वो जरूर इस घर को छोड़ कर चली जाएँगी, बस वह उसे एक हफ्ते यही रहने दे और उसे उसका ख़याल रखने दे और उसे डांटे नहीं । क्यूंकि उसकी पत्नी गायत्री दो हफ्तों के लिए किसी काम से बाहर गयी थी, तो वह मान गया। शीतल उसका किसी छोटे बच्चे की तरह ख्याल रखती थी, हर रात को उसके बचपन का कोई न कोई वकाया उसे सुनाती थी। पहले दिन तो उसे बहुत अजीब लगा और उसका मन किया की वो वहा से भाग जाये पर फिर धीरे धीरे उसे अच्छा महसूस होने लगा। जब उसकी माँ उसके बालो को धीरे धीरे सहलाती तो उसे बहुत आनंद आता। उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा, उसने अपनी माँ के साथ कितना गलत व्यवहार किया फिर भी उसकी माँ उसपर असीम प्यार उड़ेल रही है। उसे अपने पापा के आखिरी शब्द भी याद आने लगे, उसने निश्चय कर लिया की वो माँ को कही नहीं जाने देगा। अब वह उन्हें उनके हिस्से की हर वो ख़ुशी देगा जिसकी वो हकदार है। पहले वह हमेशा उन्हें देखते ही मुँह बना लेता था, पर अब हर समय हँसता रहता। शीतल भी उसकी ख़ुशी में खुश थी। कल उसका आखिरी दिन है ये वो अच्छे से जानती थी, फिर भी इस ख़ुशी के पल को बिना किसी चिंता के जी रही थी। खुश भी क्यों न हो,आखिरकार उनका श्रवण वापस लौट आया था उनके पास।बेसक श्रवण कुछ कहता नहीं था पर वे जानती थी की उसे अपनी गलतियों पर पछतावा है।सुबह श्रवण जॉगिंग के लिए जल्दी निकल गया, माँ अभी उठी नहीं थी। उसने सोच लिया था की वह उन्हें कही नहीं जाने देगा, अगर वे जाने की जिद करेंगी तो उनसे कह देगा की वह भी उनके साथ चलेगा।फिर भी अगर वे नहीं मानी तो उनके पैरो में गिर जाएगा और अपने किये के लिए माफ़ी मांग लेगा। वह वापस जाने के लिए पीछे मुदा ही था की किसी ने उसे आवाज लगायी। ये तो उनके फैमिली डॉक्टर और उसकी मम्मी के बहुत अच्छे दोस्त डॉक्टर राघव जोशी थे, वे दौड़ते हुए उसके पास आये।

"कैसे हो बेटा........."

"मैं ठीक हूँ अंकल........आप कैसे है......."

"हमेशा की तरह......बिलकुल फिट एंड फाइन..........और हैंडसम भी...." और फिर वे खुद ही अपने इस मजाक पर हो हो कर हँस दिए।

"बस तुम्हारी माँ के लिए दुःख होता है......बेचारी....भगवान ने बहुत बुरा किया उसके साथ...."

श्रवण शर्म और पछतावे के कारण सर झुकाये खड़ा हो गया," ये सब मेरी वजह से हुआ है अंकल........"

"खुद को दोष मत दो बेटा..........."

"नहीं अंकल इसमें मेरी ही गलती है........मैंने ही कभी उनका ख़याल नहीं रखा........" उसकी आँखों से आंसुओ की बुँदे नीचे गिर गयी।

"सम्भालो खुद को बेटा......शीतल से मैं जितनी बार मिला वह तो तुम्हारी तारीफ करते थकती ही नहीं थी........जितना ख़याल तुमने उसका रखा आज के जमाने में कोण बेटा रखता है........अब उसके ही भाग्य में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी थी तो तुम क्या कर सकते हो......"

श्रवण पर तो जैसे आसमान टूट कर गिर पड़ा, उसे कुछ भी सुनाई देना बंद हो गया। वो बदहवास सा अपने घर की ओर भागा, डॉक्टर भी उसे परेशान देख उसके पीछे भागे। शीतल के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था, श्रवण जैसे ही अंदर घुसा सामने का मंजर देख उसके होश उड़ गए। पलंग के पास शीतल निढाल पड़ी थी, उसकी आँखे आसमान की ओर शुन्य में ताक रही थी परन्तु उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी, सुकून भरी मुस्कान। डॉक्टर राघव जो उसके पीछे-पीछे दौड़ते हुए आये थे, शीतल को उस अवस्था में देख कर वही जम गए। श्रवण दहाड़े मार कर रोने लगा और माफ़ी मांगने लगा। शीतल का विधिवत अंतिम संस्कार किया गया। डॉक्टर राघव को जो अंदेशा था वो सही निकला, शीतल की सारी दवाईयां ज्यों की त्यों पड़ी हुई थी, उसने कई महीनो पहले अपनी दवा खाना छोड़ दिया था।उसके ऊपर एक नोट भी पड़ा था जिसपर लिखा था:

'हमेशा खुश रहना बेटे............उम्मीद है अब कभी तुम कोई गलती नहीं करोगे......अपना ध्यान रखना...और मेरी बहु का भी .......अलविदा.....'

श्रवण चुपचाप अपनी माँ की चिता को जलता देख रहा था। कुछ भी नहीं रह गया था उसके पास, अपनी मम्मी को हमेशा के लिए खो दिया था उसने, रह गया था तो बस एक पछतावा की काश वो अपने पिता की अंतिम इच्छा मान लेता, काश वो अपनी गलती का एहसास जल्दी कर लेता।

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