जमाना खुद के नजरिए से मुझे परख रहा,
खराब खुद की नजरें हैं और बुरा मुझे कह रहा।मैंने अंधेरों में चिराग जला रखे हैं ,
साजिशों के परदे उठा रखे हैं ,
और उन बुजुर्गों की आंखे आज नम क्यों हैं,
जिन्होंने तेरे लिए जख्म खा रखे हैं ,
कितना बदल चुका है ना तू ज़माने ,
तूने सिर्फ मतलब के ही बीज उगा रखें है।