ज़माना

9 1 1
                                    

जमाना खुद के नजरिए से मुझे परख रहा,
खराब खुद की नजरें हैं और बुरा मुझे कह रहा।

मैंने अंधेरों में चिराग जला रखे हैं ,
साजिशों के परदे उठा रखे हैं ,
और उन बुजुर्गों की आंखे आज नम क्यों हैं,
जिन्होंने तेरे लिए जख्म खा रखे हैं ,
कितना बदल चुका है ना तू ज़माने ,
तूने सिर्फ मतलब के ही बीज उगा रखें है।

You've reached the end of published parts.

⏰ Last updated: Sep 12, 2019 ⏰

Add this story to your Library to get notified about new parts!

ज़मानाWhere stories live. Discover now