जादूगरनी

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आज ख्वाबों के गगन में
हुआ रे मगन मैं
लग गई ये लगन है
उस पगली को कितना चाहूं

बह रही जो पवन है
कह रही यह कथन है
हुआ तेरा जो जनम है
तेरे साये में जीता जाऊं

ओ री तू कैसी जादूगरनी है

मेरे रातों के स्वपन में
निंदियां से जगन में
इस मरन- जियन में
हाथ तेरा ही मैं तो पाऊं

जल रही जो अगन है
दिल तुझमें मगन है
जग हो रहा उपवन है
तुझको गीत बनाके गुनगुनाऊं

ओ री तू कैसी जादूगरनी है ।





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