इंसान! आज इंसान कहा?
भीड़ में खड़े तो होते हैं
पर यहां इंसान ही नहीं दिखाते
यहां लोग मुड़कर भी नहीं देखते
पर अपने आपको एक
कामयाब इंसान कहते हैं
वो कहते है हां हम समझते हैं
लेकिन उनकी फितरत बदलती नहींइज्जत से बात करते दिनों में
अपने घरवालों का खयाल रखते
पर अंधेरे में किसी के भी
इज्ज़त से खिलवाड़ करते हैं
और ये अपने आपको
एक अच्छे घर का इंसान मानते हैचंद पैसों के लिए
अपने ही पेट के बच्चे को
अकेला मरता छोड़ दिया
और ये अपने आपको औरत कहती हैं
हां! ये एक इंसान हैं
और कहते इंसान से ही तो गलती होती हैंकहते हैं इंसानियत से बढ़कर
कुछ नहीं
पर यहां सब लोग
इंसानियत के नाम पर
धंधा करने लगे हैं
बस एक दूसरे की
मेहनत को रोंदना चाहिते हैं
और कहते! ये सबको समझते हैंइस इंसानियत की दुनिया में
अपनों के बीच खड़े तो होंगे
पर ख़ुद को धुंधते रह जाएंगेे
उनकी चमक के बीच
आज इंसान कहा?
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Petals : my kind of Poems...
Thơ caPoems are just like the petals of flowers Soft but it tells the whole story of the flower... This is my first book on poems and some quotes... Please read my poems which I have written first time..... An immature writer but i write what I feel....