GuneshwarRaoL

|||||मेरा सपना|||||
          	
          	चल उस चौखट के पार तो चल
          	मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          	सपना एक अपना बुनना
          	
          	हर बार कलरव करती एक 
          	चिड्या आ जाती है 
          	और टूट जाता है वह सपना 
          	
          	चल उस चौखट के पार तो चल
          	मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          	सपना एक अपना बुनना
          	
          	देख संकू  उस कल कल
          	बहती नीर को
          	अंजुरी में ले नीर
          	और मारूँ छींटे अपने चेहरे पर
          	धो लूँ सारा कलुषित
          	
          	और शांत, बैठ किनारे नीर के
          	चाहा पढ़ लूँ सारा शोर और सच
          	नीर में किलोल करती मछलियों का
          	और उन्हें तकते पक्षियों का
          	और एक पैर पर खड़े बगुलों का 
          	सच जान संकू 
          	
          	चल उस चौखट के पार तो चल
          	मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          	सपना एक अपना बुनना
          	
          	हर बार कलरव करती एक 
          	चिड्या आ जाती है 
          	और टूट जाता है वह सपना
          	
          	और चाहा मैंने
          	रोक संकू
          	बच्चों के रुदन और क्रदन को 
          	नन्हे नन्हे हांथो को ले अंजुरी में
          	गीत ऐसा कोई गुनगुना संकू
          	और उन्हें अंकपाश में भर
          	कह संकू मैं हूँ न
          	
          	
          	चल उस चौखट के पार तो चल
          	मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          	सपना एक अपना बुनना
          	
          	हर बार कलरव करती एक 
          	चिड्या आ जाती है 
          	और टूट जाता है वह सपना
          	
          	और मैंने चाहा बन जांऊ
          	और बंध जांऊ टंग जांऊ
          	बन घंटी मंदिर में
          	हर बार भांति भांति के
          	भक्तो का स्पर्श मिलता रहे
          	और हमेश कुछ सीखता रंहू
          	और चाहा हरदम जगाता रहूँ
          	भगवन को सब भक्तों के लिए 
          	
          	
          	चल उस चौखट के पार तो चल
          	मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          	सपना एक अपना बुनना
          	
          	
          	हर बार कलरव करती एक 
          	चिड्या आ जाती है 
          	और टूट जाता है वह सपना 
          	

GuneshwarRaoL

|||||मेरा सपना|||||
          
          चल उस चौखट के पार तो चल
          मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          सपना एक अपना बुनना
          
          हर बार कलरव करती एक 
          चिड्या आ जाती है 
          और टूट जाता है वह सपना 
          
          चल उस चौखट के पार तो चल
          मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          सपना एक अपना बुनना
          
          देख संकू  उस कल कल
          बहती नीर को
          अंजुरी में ले नीर
          और मारूँ छींटे अपने चेहरे पर
          धो लूँ सारा कलुषित
          
          और शांत, बैठ किनारे नीर के
          चाहा पढ़ लूँ सारा शोर और सच
          नीर में किलोल करती मछलियों का
          और उन्हें तकते पक्षियों का
          और एक पैर पर खड़े बगुलों का 
          सच जान संकू 
          
          चल उस चौखट के पार तो चल
          मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          सपना एक अपना बुनना
          
          हर बार कलरव करती एक 
          चिड्या आ जाती है 
          और टूट जाता है वह सपना
          
          और चाहा मैंने
          रोक संकू
          बच्चों के रुदन और क्रदन को 
          नन्हे नन्हे हांथो को ले अंजुरी में
          गीत ऐसा कोई गुनगुना संकू
          और उन्हें अंकपाश में भर
          कह संकू मैं हूँ न
          
          
          चल उस चौखट के पार तो चल
          मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          सपना एक अपना बुनना
          
          हर बार कलरव करती एक 
          चिड्या आ जाती है 
          और टूट जाता है वह सपना
          
          और मैंने चाहा बन जांऊ
          और बंध जांऊ टंग जांऊ
          बन घंटी मंदिर में
          हर बार भांति भांति के
          भक्तो का स्पर्श मिलता रहे
          और हमेश कुछ सीखता रंहू
          और चाहा हरदम जगाता रहूँ
          भगवन को सब भक्तों के लिए 
          
          
          चल उस चौखट के पार तो चल
          मैंने चाहा अपना एक सपना बुनना  
          सपना एक अपना बुनना
          
          
          हर बार कलरव करती एक 
          चिड्या आ जाती है 
          और टूट जाता है वह सपना