°~°। शायद हा । :(
वो नूर उनकी निगाहों का, दिल को नचाए
शायद बर्बादी के कुएं में डूब रहा हु मै, नजने कोन आके बचाए।
राहत तो देती है उनकी आवाज़ मुझे, शायद ये कान बस सुनना चाहते।
दूर जाने की कोशिश करु काफी, शायद ये पैर उनसे दूर से होना नही चाहते।
सोचता हु कुछ बाते बता दू उन्हें, मगर शायद पैर पर कुल्हाड़ी नही... कुल्हाड़ी सर पर मारदूंगा
मेरे खयाल मुझे ही अंदर से खा रहे है, शायद पूरी रात... रो ही दूंगा
कभी कभी लगता है, शायद ये चांद मुझे चिढ़ाता है
धरती के नज़दीग जो है, शायाद इसी बात का घमंड दिखाता है
नजदीकिया तो हम भी बढ़ाना चाहते है, मगर शायद उन्हें ये मंजूर नहीं
रोक सकू में उन्हें कुछ देर, शायद में उतना बहादुर नही।
अब सच में लगता है चहता हूं मैं उन्हे, मगर शायद मेरे लब्ज़ उन्हे बताना नही चाहते
डरता है मेरा दिल इजहार करने से, अब तो मेरे हात भी मेरी कलम से लिखवाना नही चाहते।
बच्चों जैसी बाते कर रहा हु...
हैं न...
बच्चा हु शायद समझता नही
लोगो को लगता है ऐसा मगर, में समाजदार हु बस समझना चाहता नही।
ना इज़हार कर पा राहा हु ना ही दिल को मना पा रहा हु,
मेरा खुदा भी मुझ पर हस्ता है
शायद मेरी बाते बता दे कोई उन्हे,
क्यो की मेरे पास बस वापस जाने का रास्ता है।
_सर्वेश