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Story by Sensitive Observer
- 1 Published Story
सृष्टि
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बेतुके से ख़्याल हैं फिर भी खूब सोचते हैं,
नक्काशियों से महल कमाल है फिर भी खरोंचते हैं,
देखा हमने कि सब जैसे...
#35 in poem
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