@Rebeca, Thank you for kind words... Its good to have you read my stuff... Do mention low points also if you feel.... I do write poetry bt b some other name as in shayari we adopt an urdu name which called 'makhta' in ghazal. I'll share one of those ghazals with you next time... this time its hindi again... its called... मैंने देखा है तुम्हें...
मैंने देखा है तुम्हें….. तुम्हारी मुस्कुराहटों को..जो होठों पर खिलें तो रोशनी हो जाती है
मातम मना रही मेरी हर सांस में ज़िन्दगी भर जातीं है ….
कभी देखा था उन होठों को और होठों पर सजी उस लाली को..
जैसे बहारों के मौसम ने सजाया था किसी फूलों की डाली को,,,
मैंने देखा है उन आँखों में जिनमें. जहां दुनिया को देखने का खुबसूरत नजरिया है…
उन आँखों में कभी दर्द का समंदर.. तो कभी जज्बातों का दरिया है,,,,
मैंने देखा है ..संग-ए-मर्मर सा तराशा हुआ तुम्हारा वो जिस्म…
जो कभी रातों में ताजमहल है कभी कश्मीर का सवेरा है !
फूलों की वादियों सा महकता तुम्हारा दिल…
जिसमे चाहत है मेरी और सिर्फ मेरा बसेरा है…
इस तरह ,,हर रोज़ तुममें एक नयी कायनात ढूँढता हूँ…
इसलिए तो मैं तुम्हें ..और सिर्फ तुम्हें ही देखता हूँ
तुम हंसकर कह दोगी के यह तो सब किताबी बातें हैं,
पर ये कभी ना समझोगी…
के तुम में इतनी खूबियाँ देखनेवाली ,,मेरे मन की दो आँखें हैं..
वही आँखें..जो दुनिया की परवाह नहीं करती;
वही आँखें..जिनको तुममें कभी कोई नुक्स..कोई छलावा दीखता ही नहीं
तो फिर इस देख सकने वाली दुनिया के लिए ….मैं अंधा ही सही”
जो देख लेते हैं दुनिया के खूबसूरत नजारों को ….सच्चा प्यार ही कभी दिखता नहीं उन्हें
हर पल..हर लम्हा…हर दिन मन की इन्ही दो आँखों से …मैंने देखा है तुम्हें..
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