कलयुग
देश के इन्सान खुली आंखों से भी सो रहा है।
क्या यही श्री कृष्ण के वचनानुसार घोर कलयुग का पैगाम है?
कहीं औरतों को ज़िंदा जलाया जा रहा है, कहीं शासकों की बुद्धि भ्रष्ट हैं।
पर सोचकर भी जी घबराता है कि यह तो बस कलि काल की शुरुआत है।
आगे क्या होगा सोचकर भी दिल टूट जाता है।
न जाने कितनी द्रौपदीयों की सिसकियां सुननी शेष है?
न जाने कितने भीष्मों का बलीदान देखना शेष है?
न जाने कितने रावणों की बर्बरता इस पृथ्वी ने झेलना है।
न जाने अब पृथ्वी में कितना अधर्म शेष है?
सोचकर भी जी घबराता है कि यह तो बस कलि काल की शुरुआत है।
शायद हां यही श्री कृष्ण के वचनानुसार घोर कलयुग का पैगाम है।