भला कीजे भला होगा ,
बुरा कीजे बुरा होगा ,जब कुदरत की लाठी चलती हैं तो आवाज नहीं आती .
दिवाकर की बातें श्याम सुंदर के कानों में गूंज रही थी .
लुधियाना सिटी अस्पताल में जख्मी हालत में वह अपनी मौत का इंतज़ार कर रहा था .
बदलते हुए वक़्त की तासीरने उसे पलभर में जमीन पर पटक दिया .
विश्वास भंग होने की स्थिति में दिवाकर ने श्याम सुंदर को शब्दों से चोटिल कर दिया .
' मैंने वह पैसे एक भिखारी की झोली में डाल दिये हैं ! '
एक छोटे आदमी ने पलभर में एक करोड़ पति आसामी को भिखारी की जमात में खड़ा कर दिया . उस के गौरव और आत्म सन्मान को कुचल कर रख दिया .
श्याम सुंदर ने अपने मुलाजिम गुजराल को काफी सिर चढ़ाया था . उस के उकसाने पर श्याम सुंदरने दिवाकर के अधिकार को हथिया लिया था . उस की बुरी नियत का पता चलते ही दिवाकर अपना आपा खो बैठा था .
श्याम सुंदर की नीयत में खोट आ गई थी . उसी वजह से वह लुप्पा चुप्पी खेल रहा था . वह फोन पर भी नहीं आता था .
गुजराल उस का मुलाजिम था . श्याम सुंदर का चमचा था . आज की भाषा मे एच एम वी - हिझ मास्टर वॉइस था . वह पढ़ाये हुए तोते की तरह अपनें मालिक की बात रटा करता था . दिवाकर सब कुछ जानता था ., समजता था ! गुजराल बड़ी चालू चीज थी . उस ने बड़ी आसानी से अपने मालिक का ब्रेन वॉश कर दिया था . जिस के कारण एक ही पल में अपना रंग बदल दिया था . उस ने व्यवसायिक उसूलो को भुलाकर दिवाकर के साथ धौका किया था . फिर भी दिवाकर ' श्रद्धा और सबुरी के जीवन मंत्र को अपनाकर चुप बैठा था !!
कुछ दिनों से दोनो मुलाजिम और मालिक चूहा बिल्ली का खेल खेल रहे थे . उन की नियत में खोट थी . उस का पता लगते ही दिवाकर को बहुत ही बड़ा झटका लगा ! उसने तुरंत ही श्याम सुंदर का संपर्क करने का प्रयास किया . लेकिन न तो वह फ़ोन उठाता था , न बात करता था .
काफी कोशिश के बाद उस की बीबी ने फोन उठाकर जवाब दिया था :
' खाना खाने बैठे हैं ! '
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भिखारी - पार्ट - १
Ficción Generalजब अमीर लोग गरीबों के पैसे खा जाये तो भिखारी नहीं तो क्या कहेंगे ?