खराब ज़िन्दगी।

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ज़िन्दगी खराब कर के बैठा हूँ।
मेरी पूरी किताब भर के बैठा हूँ।।

अंधेरे है श्वेता की भी तलब है।
मैं पागल चराग़ गुल कर के बैठा हूँ।।

मैं ही थोड़ी हूँ जो अज़ाब मुझ पर हो।
मैं भी कुछ हिसाब कर के बैठा हूँ।।

मैं पहले रब, शब, शहर था तेरी।
अब कहते हो सांप बन के बैठा हूँ।।

जब आसमान, आसमान नही ज़मीन था।
मैं अब ज़मी भी नही ख़ाक बन के बैठा हूँ।।

अब मैं ग़लत हूँ रक़ीब तुम भी तो थे।
करके नही बर्बाद होक बैठा हूँ।।

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