ख्वाबों को सजाने वाली मा

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जिसकी उंगली पकड़ कर लोग
दुनिया की सैर करते हैं
जिसके चेहरे की मुस्कान के लिए
हम सारे नाटक करते हैं
बदलता है जब वक्त यार
तब उससे ही क्यों लड़ते हैं

कंधों पर जिसके दुनिया देखी
इस जहां को जो समझाती है
पैसे का नशा अजीब है यार
वह मां याद तलक नहीं आती है

लालच से बड़ा कोई बाप नहीं
सब इसके बैटे होते हैं
जो पैदा करते हैं हमको
हम उनको ही खो देते हैं

दुनियादारी के चक्कर में
जो मां का सम्मान जो घटाओगे
चाहै नहा लो लाख बार गंगा
पर नर्क को ही तुम जाओगे

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⏰ पिछला अद्यतन: Dec 01, 2021 ⏰

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