परेशान नहीं बहुत परेशान हूँ मैं
कुछ रिश्तों ने बोझ समझ रखा है
बदलते जग की रीत कैसे समझूँगी
जब सिखाने वालों ने मुँह मोड़ रखा है। ।बातें बहुत सी है करने को
फिर भी मोन बैठी हूँ
आसुओं ने आखें भर रखी है
ग़मों ने दिल देहला रखा है। ।किससे कहूं ठीक नहीं हूँ मैं
हाल पूछने वाला कोई अपना ही नहीं है
जब मरना अकेले ही है
तो अकेले जीना इतना मुश्किल क्यूँ है?क्यूँ ये दिल किसी से मोहब्बत करता है
फिर उससे जुदाई रूह तक को झकझोर कर देता है
ये कैसी रीत दुनिया की चली आ रहीं हैं
पल में जन्नत तो पल में जहन्नुम लगती है।।अभिराज्योति ❤
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ये कैसी रीत
Poetryजन्म और मौत के बीच हम कितने लोगो से मिलते है, कितने यादें बनाते है, कुछ रिश्ते भी बना लेते है, उन में से कुछ रिश्ते ऐसे होते है, जो जिंदगी की बहुत बड़ी सीख देते है कुछ साथ निभाते है, कुछ छोड़ कर चले जाने हैं