Who won great Porus or fake alexander

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सत्य कथा - अविजित महाराज पौरस
( महाराज पुरुषोत्तम )|

पर्शिया कि हार ने एशिया के द्वार खोल दिया । भागते पर्शियन शासकों का पीछा करते हुये सिकंदर हिंदुकुश तक पहुँच गया । चरवाहों , गुप्तचरों ने सूचना दी इसके पार एक महान सभ्यता है। धन धान्य से भरपूर, सन्यासियों , आचार्यों , गुरूकुलों , योद्धाओं , किसानों से विभूषित सभ्यता जो अभी तक अविजित है।

सिकंदर ने जिसके पास अरबी , फ़रिशर्मिंन घोड़ों से सुसज्जित सेना थी ने भारत पर आक्रमण का आदेश दिया , झेलम के तट पर उसने पड़ाव डाल दिया, आधीनता का आदेश दिया।

महाराज पोरस कि सभा लगी थी, गुप्तचरों ने सूचना दी आधे विश्व को परास्त कर देने वाला यूनान का सम्राट अलक्क्षेन्द्र ने भारत विजय हेतु सीमा पर पड़ाव डाल दिया है।

महामंत्री का प्रस्ताव था - "राजन तक्षशिला के राजा आम्भीक ने अधीनता स्वीकार कर ली है।
यह विश्व विजेता है , भारत के सभी महाजनपदों से वार्ता करके ही कोई उचित निर्णय लें"।

महाराज पोरस जो सात फीट लंबे थे, जिनकी भुजाओं में इतना बल था कि सौ बलशाली योद्धा एक साथ युद्ध करने का साहस नहीं कर सकते थे !
ने महामंत्री को फटकार लगाई "हम भारत के सीमांत क्षेत्र के शासक है यदि हम ही पराजय स्वीकार कर लिये तो भारत कैसे सुरक्षित रहेगा"

अपने पुत्र को सिकंदर कि शक्ति पता करने भेजेते हैं। साहसी पुत्र ने सिकंदर पर हमला कर दिया।
23 वर्ष कि अवस्था में वीर बालक युद्ध भूमि में मारा गया ,
इस समाचार से महाराज पोरस विचलित नहीं हुये उन्होंने सेनापति को झेलम तट पर पड़ाव का आदेश दिया। यूनानी सैनिक इतनी छोटी सेना देखकर हैरान थे।

21 दिन की प्रतीक्षा के बाद सिंकदर ने पोरस कि सेना पर हमला कर दिया परन्तु अनुपात में कम क्षत्रिय हारने का नाम नहीं ले रहे थे।

सेनापति महाराज पोरस को सूचना देता है "सिकंदर के तेज घोड़ों और आग के गोलो के सामने क्षत्रिय योद्धा वीरगति को प्राप्त कर रहे "

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