दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी।
महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया।भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा...।
भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब-तक सब देख नहीं लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था।
धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका।
दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला।
द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्म को सबसे अधिक प्रेम करते थे, तो कृष्ण ने उन्ही के हाथों पितामह को निर्मम मृत्यु दिलाई।
अर्जुन रोते रहे, पर तीर चलाते रहे... क्या लगता है, अपने ही हाथों अपने अभिभावकों, भाइयों की हत्या करने की ग्लानि से अर्जुन कभी मुक्त हुए होंगे क्या ? नहीं... वे जीवन भर तड़पे होंगे। यही उनका दण्ड था।
युधिष्ठिर ने स्त्री को दाव पर लगाया, तो उन्हें भी दण्ड मिला। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ने वाले युधिष्ठिर ने युद्धभूमि में झूठ बोला, और उसी झूठ के कारण उनके गुरु की हत्या हुई। यह एक झूठ उनके सारे सत्यों पर भारी रहा... धर्मराज के लिए इससे बड़ा दण्ड क्या होगा ?
दुर्योधन को गदायुद्ध सिखाया था स्वयं बलराम ने। एक अधर्मी को गदायुद्ध की शिक्षा देने का दण्ड बलराम को भी मिला। उनके सामने उनके प्रिय दुर्योधन का वध हुआ और वे चाह कर भी कुछ न कर सके...
उस युग में दो योद्धा ऐसे थे जो अकेले सबको दण्ड दे सकते थे, कृष्ण और बर्बरीक। पर कृष्ण ने ऐसे कुकर्मियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने तक से इनकार कर दिया, और बर्बरीक को युद्ध में उतरने से ही रोक दिया।
लोग पूछते हैं कि बर्बरीक का वध क्यों हुआ?
यदि बर्बरीक का वध नहीं हुआ होता तो द्रौपदी के अपराधियों को यथोचित दण्ड नहीं मिल पाता। कृष्ण युद्धभूमि में विजय और पराजय तय करने के लिए नहीं उतरे थे, कृष्ण कृष्णा के अपराधियों को दण्ड दिलाने उतरे थे।कुछ लोगों ने कर्ण का बड़ा महिमामण्डन किया है। पर सुनिए! कर्ण कितना भी बड़ा योद्धा क्यों न रहा हो, कितना भी बड़ा दानी क्यों न रहा हो, एक स्त्री के वस्त्र-हरण में सहयोग का पाप इतना बड़ा है कि उसके समक्ष सारे पुण्य छोटे पड़ जाएंगे। द्रौपदी के अपमान में किये गये सहयोग ने यह सिद्ध कर दिया और उसका वध ही धर्म था।
"स्त्री कोई वस्तु नहीं कि उसे दांव पर लगाया जाय..."।
कृष्ण के युग में दो स्त्रियों को बाल से पकड़ कर घसीटा गया।
देवकी के बाल पकड़े कंस ने, और द्रौपदी के बाल पकड़े दु:शासन ने। श्रीकृष्ण ने स्वयं दोनों के अपराधियों का समूल नाश किया। किसी स्त्री के अपमान का दण्ड अपराधी के समूल नाश से ही पूरा होता है, भले वह अपराधी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ही क्यों न हो...।
-; यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भव- ति भारत ।
अभ्युत्थान- मधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्- ॥
परित्राणाय- साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्- ।
धर्मसंस्था- पनार्थाय सम्भवामि युगे युगे
॥ :-
*स्मरण रहे इस कलियुग में भी प्रत्येक व्यक्ति के प्रत्येक पाप पर गोविंद की दृष्टि 12 माह, 24 घण्टे रहती है, प्रत्येक पाप का दंड भोगना ही पड़ेगा अन्य कोई मार्ग नही है🙏🚩*
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Myths and realities
SpiritualGiving rise to myths about our origin we all have been living in oblivion due to manipulation of out glorious past by some historians and politicians . I will try to dispel some of them to the best of my knowledge . And also about myths related to o...